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________________ ८६४ भगवती कोट्यः, द्वे च वर्षसहस्रे अबाधा, अवाधोनिका कर्मस्थितिः - कर्मनिषेकः ! । आन्तरायिकं यथा ज्ञानावरणीयम् ॥ म्र० ४ ॥ टीका - ' कइ णं भंते ! कम्मप्पयडीओ पण्णत्ताओ ' गौतमः पृच्छति - हे भदन्त ! कति कियत्यः खलु कर्मप्रकृतयः कर्मभेदाः मज्ञप्ताः ? कथिताः १, भगवानाह - गोयमा ! अट्ठ कम्मप्पयडीओ पण्णत्ताओ' हे गौतम ! अष्ट कर्मप्रकृतयः उकोसेणं वीसं सागरोचमको डाकोडीओ - दोणि य वाससहस्साणि अवाहा, अवाणिया कम्मट्टिई कम्मनिसेओ-अंतराइयं जहा णाणावर - णिज्जं ) नाम और गोत्र इन दो कर्मों की जघन्यस्थिति आठ मुहत की है उत्कृष्टस्थिति बीस २० कोडाकोडी सागरोपम की है दो हजारवर्ष की इनकी अवाधा है इस अवाधा से रहित जो कर्मस्थिति है वह कर्मनिषेककाल है । अंतरायकर्म के विषय में स्थिति आदि का कथन ज्ञानावरणीय कर्म के समान जानना चाहिये । - टीकार्थ - पहिले कर्मोपचय- कर्मबंध को सादि सान्त कहा गया है सो इसी संबंध को लेकर सूत्रकार इस सूत्रद्वारा कर्म के भेदों की और उनकी स्थिति की प्ररूपणा कर रहे हैं - इसमें गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है कि - (कड़ णं भंते । कम्मप्पयडीओ पण्णत्ताओ) हे भदन्त ! कर्म के कितने भेद कहे गये हैं ? उत्तर में प्रभु ने कहा - ( गोयमा ) हे गौतम ! (अड कम्प्पयडीओ पण्णत्ताओ) कर्म के भेद आठ कहे गये दोण्णि य वाससहस्सागि अबाधा, अवाहूणिया कम्मट्टिई कम्मनिसेओ अंतराइयं जहा णाणावर णिज्जं ) नामउर्भ भने गोत्र भनी स्थिति सोछाभां गोधी भाठ મુહૂર્તની અને વધારેમાં વધારે ૨૦ કાડાકોડી સાગરોપમની છે. તેમના આખાધકાળ બે હજાર વર્ષના છે, આ આમાધકાળ સિવાયની જે સ્થિતિ છે . તે તેના કનિષેક કાળ છે. અંતરાય કર્મીની જઘન્ય, ઉત્કૃષ્ટ આદિ સ્થિતિના વિષયમાં જ્ઞાનાવરણીય ક્રમ પ્રમાણે જ સમજવું. ટીકા—પહેલાના સૂત્રમાં કર્માંપચયને (કખ ધને) સાદિ સાન્ત કહ્યા એ કમ બંધને અનુલક્ષીને સૂત્રકાર આ સૂત્ર દ્વારા કર્માંના પ્રકારાની અને તેમની સ્થિતિની પ્રરૂપણા કરી રહ્યા છેઆ વિષયને અનુલક્ષીને ગૌતમ સ્વામી महावीर प्रभुने मेवा प्रश्न पूछे छेडे ( कइणं भंते ! कम्मप्पयडीओ पण्णत्ताओ १ ) હું સદ્દન્ત ! કર્મના કેટલા ભેદ કહ્યા છે? उत्तर— (गोयमा !) डे गौतम ! (अट्ठ कम्म' पयडीओ पण्णत्ताओ) ना माठ प्रार ह्या छे (तंजा ) ते आठ प्राशे नीचे प्रभा -
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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