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________________ - - प्रमेयचन्द्रिका टीका श०६ ९० ३ ० १ महाकाल्पकर्मनिरूपणम् ८२२ 'से केणटेणं० ' हे भदन्त ! तत् केनार्थेन एवं पूर्वोक्तमुच्यते यत् तस्यात्मा यावत्-सुखतया नो दुःखतया परिणमति ? भगवानाह- गोयमा ! से जहानामए वत्थस्स जल्लियस्त वा, पकियस्स वा ' हे गौतम ! तत् यथा नामवस्त्रस्य जल्लितस्य शरीरमलोपेतस्य वा, परितस्य-आर्द्रमलोपेतत्य वा ' मइल्लियस्स वा, रइल्लियस्स वा' मलितस्य-कठिनमलयुक्तस्य वा, रजस्कितस्य-रजोयुक्तस्य धूलिधूसरित स्य वा, 'आणुपुन्चीए परिकम्मिज्जमाणरस' आनुपूर्त्या अनुक्रमेण परिकर्यमाणस्य मलापनयनाथ क्षारादिद्रव्येण शोध्यमानस्य 'सुद्धणं वारिणा धोव्वेमाणस्स' शुद्धन निर्मलेन स्वच्छेन वारिणा जलेन धाव्यमानस्य प्रक्षाल्यमानस्य वस्त्रस्य परिणम जाता है ! अब गौतम इस विषय में प्रभु ले कारण जानने की इच्छा से (से केणढेणं०) ऐसा प्रश्न करते हैं वे पूछते हैं कि हे भदन्त ! आपऐसा किस कारण को लेकर कहते हैं कि उसका आत्मा-शरीर यावत् सुखरूप से-दुःखरूप से नहीं परिणमता है ? इसके उत्तर में प्रभु उनसे कहते हैं कि (गोयमा से जहा नामए वत्थस्स जल्लियस्स वा, पकियस्स वो) हे गौतम! जैसे कोई एक वस्त्र हो और उसके ऊपर शरीर का मल लगा हो, अथवा कोई ताजी गीली कीचड़ लगी हो महल्लियस्स वा, रईल्लियस्स वा) या कोइ उसके ऊपर कठिन मैल लगा हो, या धूल उस पर चिपकी हो-धूलसे धूसरित बना हुआ हो ऐसा वह वस्त्र हो तो वह जब (अणुपुबीए परिकग्लिजमाणस्स) चार २ धो धाकर साफ किया जाता है अर्थात्-क्षारद्रव्य से जब मैल दर करने के लिये वह धोया जाता है (सद्धणं वारिणा धोन्वेमाणस्स) और निर्मल-साफ-जल से जब वह निखारा जाता है, तो (सवओ पोग्गला હોય છે. તેમને આત્મા સુખરૂપે પરિણમે છે, ત્યાં સુધીનું સમસ્ત કથન ગ્રહણ ४२ “से केणटेणं " महन्त ! मा५ श! ॥२मे ४३ छ। ? આ પ્રશ્નને ઉત્તર આપતાં મહાવીર પ્રભુ નીચેનું દષ્ટાંત આપે છે – (गोयमा ! से जहा नामए वत्थस्स जल्लियस्स वा, पंकियस्स वा) गौतम । કેઈ એક વસ્ત્રને શરીરને મેલ, પરસેવો વગેરે લાગેલાં હોય, અથવા તેના 6५२ तासीनी माटीसा डाय, “ मइल्लियस्स वा, रइल्लियस्स वा " अथवा तेना ५२ धूजन २४४d! यांच्या डाय, मेवा पसने न्यारे “ आणुपुवीए परिकम्मिज्जमाणस्स" पावा२ घाधन सा ४२वामा माछ-मेट सोस २१ क्षारयुत पाथी तो मेरा २ ४२पामा मावे छे, (सुद्धेणं वारिणा धोव्वेमाणस ) म निम पाम ल्यारे तेन तापामा भावे, त्यारे
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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