SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 840
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयचन्द्रिका टी० श० ६ ० ३ ० १ महाकर्मापकर्मनिरूपणं ८१६ पुद्गलाः उपचीयन्ते निषेकरचनतः उपचिता भवन्ति किम् ? अथवा वन्धनतो बध्यन्ते, निधत्ततश्रीयन्ते, निकाचनत उपचीयन्ते किम् ? ' सया समियं पोग्गला बज्नंति' सदा-सर्वदा - नित्यम्, समितं- निरन्तरं पुद्गलाः वध्यन्ते ? सदात्वं तु व्यवहारतोऽसातत्येऽपि स्यात् अत आह- समितमिति " सया समियं पोग्गला उपचित होते हैं क्या ? अथवा - ( बज्झति, चिज्जति, उवचिज्जति ) ऐसी इन तीन क्रियाओं का जो सूत्रकार ने पाठ रखा है सो उसका अभिप्राय ऐसा भी हो सकता है कि प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेश इन चार प्रकार के बंधो की अपेक्षा लेकर ( बज्झति ) ऐसा प्रश्न किया गया है कर्मबन्धन के बाद कर्मों में दस १० प्रकार की अवस्थाएँ होती हैं उनमें एक अथवा निघत्त है सो इस अवस्था को लेकर (चिज्जंति) ऐसा प्रश्न किया गया है और निकाचित अवस्था को लेकर ( उवचिज्जति ) ऐसा प्रश्न किया है (सया समियं पोग्गला बज्झति ) ऐसा जो पूछा गया है- सो उसका अभिप्राय ऐसा है कि ( जीवो समयपबद्ध बझति ) इस सिद्धान्त स्वीकृत मान्यता को ध्यान में रखकर ही पूछा गया है - अर्थात् जीव क्या समयासमय कर्मका बंध करता है ? यहाँ जो (समियं ) यह पद दिया गया है वह इस बात को दूर करने के लिये दिया गया है कि निरंतरता के अभाव में भी जो लोकरूढि से ( सदा ) छे १ " सव्वओ पोग्गला उवचिज्जंति " शुं भेवो भव समस्त हिशाओ भांथी भवर्ग ३५ युद्धसोना उपयय ४रे छे ? ( बज्झति, चिजंति, उब चिज्जति ) આ ત્રણે ક્રિયાઓના એવા પણુ અથ થાય છે કે પ્રકૃતિ, સ્થિતિ, અનુભાગ मने अहेश या यार प्रहारना मधोनी अपेक्षाओ " बन्ज्ञ ंति " मेवो प्रश्न ४रायो छे. કર્મ બન્યન થયા પછી કર્મામાં દસ પ્રકારની અવસ્થાએ થાય છે, તેમાંની निधत्त अवस्था छे, भने ते निधत्त अवस्थाने अनुसक्षीने " चिज्जंति " मेवो अश्न पूछयो छे, मने निष्ठायन अवस्थाने अनुसक्षीने " उवचिन्जंति " येवो अश्न पूछयो छे. “ सयासमीयं पोगला बज्झति " मा प्रश्न पूछवा छ जना हेतु सेवा छे " जीवो समयपवद्ध बज्झति " शुभव प्रत्येक समये उनी अध रे छे? सूत्रमां ? " समियं " यह आपवामां आव्यु छे ते એ વાતને દૂર કરવાને માટે આપવામાં આવ્યુ છે કે નિરન્તરતાના અભાવ હાવા છતાં લેાકા “ સદા ’પદ્મને ઉપચેગ કરતા હાય છે. અહીં તેા સૂત્રદ્વાર એમ બતાવવા માગે છે કે જીવ સદા ( હુમેશા ) નિરન્તર ( વ્યવધાન
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy