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________________ ७८ ___भगवतीय तद् अथ, नूनं निश्चयेन किम् महाकर्मणः स्थित्याद्यपेक्षया वहुकर्मवतः महाक्रियस्य कायिक्यादिमहाक्रियायुक्तस्य, महास्रवस्य - कर्मवन्धहेतुभूतमहामिथ्यात्वमहारम्भमहापरिग्रहादिमतः, महावेदनस्य - महादाहज्वरादिजनितपीडायुक्तस्य जीवस्य, सर्वतः सर्वासु दिक्षु, सर्वान् वा जीवप्रदेशान् अश्रित्य पुद्गलाः कर्मपरमाणक: वध्यन्ते ? 'सधओ पोग्गला चिति' सर्वतः पुछला: चीयन्ते ? वन्धनरूपेण संगृह्यन्ते किम् ? ' सबओ पोग्गला उवचिज्जंति ' सर्वतः रहे हैं-इसमें गौतम प्रभु से पूछ रहे हैं कि (से गूणं भंते !) हे भदन्त! क्या यह निश्चित बात है कि (महाकम्मस्स) जिस जीव के कर्म की स्थिति वगैरह बहुत अधिक बड़ी ऐसे महाकर्मवाले जीव के अर्थात् अधिक स्थितिवाले, अधिक अनुभागवाले और अधिक प्रदेशवाले कर्मों से सहित जीव के (महाकिरियस महासवस्स) जिसकी कायिकी आदि क्रियाएँ बहुत बढी चढी हुई हैं इसी कारण जो कर्मबंध के हेतुभूत महामिथ्यात्व, महारम्भ महापरिग्रह में फंसा हुआ है (महावेयणस्स) महादाहज्वर आदि जनित व्यथा से जो बहुत बुरी तरह तडफड रहा है ऐसे जीव के (सन्दओ पोग्गला बज्झति) समस्त दिशाओं में से अथवा जीव के सर्व प्रदेशों को आश्रित करके पुद्गल-कर्म परमाणुओं का संकलनरूप बंध होता है ? (सव्वओ पोग्गला चिजंति) समस्त दिशाओं में से अथवा जीव के सर्व प्रदेशों का आश्रित करके कर्म वर्गणारूप पुद्गल ऐसे जीव द्वारा बंधनरूप से ग्रहण किये जाते हैं क्या? (सघओ पोग्गला उवचिज्जति) सर्वतः निषेक रचना की अपेक्षा से वे प्रभुन सेवा प्रश्न पूछे छे ? " से गूण भंते ! " महन्त ! शुग पात निश्चित छ , “महाकम्मस्स" २ नi भनी स्थिति मेरे मर्डर વધારે હોય છે એવા મહાકમવાળા જીવના-એટલે કે અધિક સ્થિતિવાળા, અધિક અનુભાગવાળા અને અધિક પ્રદેશવાળા કર્મથી યુક્ત જીવ કે જેની " महाकिरियस्स महासवस्स"यिकी माहिल्यास धol or qधारे प्रभाशुभां અને તે કારણે જે કર્મબંધના કારણરૂપ મહામિથ્યાત્વ, મહાઆરંભ, મહાपरिग्रह मालिभा :सायेसी राय छ, “ महावयणस्स" भने २ महाहा જવર આદિથી જનિત વ્યથાથી (પીડાથી) ભયંકર વેદનાને અનુભવ કરતે हाय छ, यो ७५ “ सव्वओ पोग्गळा बज्झति" शुसभरत हिशामामाथी અથવા સમસ્ત આત્મપ્રદેશથી પુલ એટલે કે કમપરમાણુઓના સંકલન રૂપ मध ४रे छे मरे। १ " सव्वओ पोग्गला चिन्जति" शुमेवो 4 समस्त દિશાઓમાંથી અથવા સમસ્ત આત્મપ્રદેશથી કર્મવMણારૂપ પુલેને ચય કરે
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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