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________________ ७८३ - भगवती तमेवापरदृष्टान्तेन दृढतरं करोति- से जहा नामए केइ पुरिसे तत्तंसि अय कवेल्लुयंसि उदगविंदु, जाव-हंता, विद्धंसं आगच्छइ ' हे गौतम ! तत् यथा नाम कोऽपि पुरुष तप्ते अय कवेल्लुके-लोहकटाहे उदकविन्दु यावत् -प्रक्षिपेत् , तत् नूनं स उदकविन्दुः तप्ते लोहकटाहे प्रक्षिप्तः सन् क्षिप्रमेव विध्वंसमागच्छति? हन्त, भदन्त ! क्षिप्रमेव विध्वंसमागच्छति नाशं प्राप्नोति । भगवान् तं हाटीन्तिके योजयति-'एवामेव गोयमा ! समणाणं निग्गंथाणं, जाव-महापज्जवसाणा भवंति ' हे गौतम ! एवमेव तप्तलोहकटाहप्रक्षिप्तोदकविन्दुवदेव श्रमणानां निर्गन्थाना यावत्-यथावादराणि कर्माणि शिथिलीकृतानि निष्ठितानि कृतानि, विपरिणामितानि क्षिप्रमेव विध्वंसमागच्छन्ति, यावतिकां वावतिकामपि च वेदनां इसी बात को दूसरे दृष्टान्त से दृढतर करते हुए वे गौतम से कहते हैं-(से जहा नामए केइ पुरिसे) गौतम ! जैसे कोई एक पुरुष (तत्तंसि अयकवल्लुसि) अत्यन्त गरम हुए लोहे के तवे पर (उदग चिन्दु ) जल की बिन्दु को डाले तो क्या गौतम ! उस लोहे के अत्यन्त गर्म हुए तबो पर डाला गया वह जल का विन्दु वहां नष्ट नहीं होगा क्या? इसके उत्तर में गौतम स्वामी प्रभु से कहते हैं क्यों नहींभदन्त ! वह वहां अवश्य ही शीघ्र नष्ट हो जायगा-(एवामेव गोयमा) तो हे गौतम ! इसी तरह से (समणाणं निग्गंथाणं) श्रमण निग्रन्थों के (जाव महापजवसाणा भवंति) श्रमण, निर्ग्रन्धोंके यथावादर कर्म शिथि. लीकृत, निष्ठित, एवं विपरिणामित होकर शीघ्र ही आमूलच्ल(बिल्कुल) नष्ट हो जाते हैं। वे चाहें थोडी या बहुत-कैसी ही वेदना क्यों न भोगे अन्त में वे महानिर्जरा शाली होकर वे समस्त कर्मों के विध्वंस कर्ता એજ વાતને બીજા દૃષ્ટાન્ત દ્વારા વધારે પુષ્ટિ આપવા માટે મહાવીર स्वामी गौतम स्वामीन ४३ छ-" से जहा नामए केइ पुरिसे" गौतम ! ४ ४ ४३५ “ तत्तंसि अयकवल्लुसि" मतिशय तपाdanadian ast ६५२ “ उद्ग विन्दु" पार्नुस ना, तो गौतम ! शुंते पान ટીપુ નાશ નહીં પામે? તેને જવાબ આપતા ગૌતમ સ્વામી મહાવીર પ્રભુને કહે છે “હે ભદન્ત ! તે ટીપુ તુરત જ અવશ્ય નાશ પામશે. ___ " एवामेव गोयमा !" गौतम! मेरा प्रमाणे “समगाण निग्गंथाण" श्रम नियाना " जाव महापज्जवसाणा भवति" स्थूय युगसो असार ક શિથિલીકૃત, નિષિત અને વિપરિણામિત થઈને તરત જ સર્વથા નષ્ટ થઇ જાય છે. તેઓ ભલે થોડી વેદના ભગવે કે વધારે વેદના ભગવે, પણ તેઓ અને મહાનિર્જરાવાળા બનીને સમસ્ત કર્મોના વિવંસ (નાશ) કર્તાજ
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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