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________________ प्रमेन्द्रिका टी0 श० ६ १०१ सू०१ वेदनानिर्जरास्वरूपनिरूपणम् ७६७ श्रित्य महावीर एवोदाहरणमिति । गौतमः पृच्छति-'छट्टि-सत्तमासु णं भंते ! पुढवीसु नेरइया महावेयणा ? हे भदन्त ! षष्ठी-सप्तम्योः पृथिव्योः नैरयिकाः जीवाः महावेदनाः महती वेदना दुखं येषां ते तथाविधाः किं भवन्ति ? भगवानाह 'हंता, महावेयणा' हे गौतम ! हन्त, सत्यम् षष्ठी-सप्तम्योः पृथिव्योः नैर-यिका जीवा महादेवनावन्तो भवन्ति । गौतमः पृच्छति-ते णं भंते ! समणेहितो निगंथेहितो महानिज्जरतरा ?' हे भदन्त ! भवदुक्तरीत्या महावेदनावतो महानिर्जरात्वस्वीकारे ते पष्ठीसप्तमीपृथिवीस्थिता महावेदनावन्तो नैरयिकाः श्रमणे आश्रित करके महावीर ही उदाहरणस्वरूप हैं। अब गौतमप्रभु से पूछते हैं कि-(छट्टि सत्तमालु णं भंते ! पुढवीसु नेरइया महावेयणा) हे भदन्त ! छट्ठी और सातवीं जो पृथिवी है, उसमें रहने वाले नारक जीव क्या महावेदना वाले होते हैं ? इस विषय का उत्तर देते हुए प्रभु गौतम ले कहते हैं कि (हंता, महावेयणा) हां, गौतम ! छठी सातवी प्रथिवी में रहने वाले नोरक जीव नियम से महावेदनावाले होते हैं। अब गौतम पुनः प्रभु से पूछते हैं कि-(ते णं भंते ! समणेहितो निग्गंथे हितो महानिज्जरतरा) हे भदन्त ! अभी आपने जो ऐसा कहा है कि जो जीव महावेदनावाला होता है वह महानिर्जरावाला होता है इस प्रकार से महवेदना वाले में महानिज रावत्व स्वीकार करने पर छठी और सातवों पृथिवी में रहने वाले नारक जीव कि जो सहावेदनावाले होते हैं श्रमण निर्ग्रन्थों की अपेक्षा क्या महानिर्जरी वाले (ट्टि सत्तमासु णं भते! पुढवीसु नेरइया महावेयणा) महन्त ! છઠ્ઠી અને સાતમી નરકામાં રહેનારા નારક છો શું મહાદનાવાળા હોય છે? उत्तर-"हता महावेयणा" गौतम! तसा अवश्य भावनावापा डाय छे. गौतम स्वामी महावीर प्रभुने पूछे थे-( तेणं भते ! समणेहितो निगंथे. हितो महानिज्जरतरा) शु. ७४ी मने सातभी न२४मा रहेना। नार। શ્રમણનિગ્રંથો કરતાં મહાનિર્જરાવાળા હોય છે? આ પ્રકારને પ્રશ્ન ઉદ્ભવવાનું કારણ એ છે કે ગૌતમ સ્વામીના પહેલા પ્રશ્નના જવાબમાં મહાવીર પ્રભુએ કહ્યું હતું કે “જે જીવ મહાદનાવાળે હોય છે તે મહાનિ જરાવાળા હોય છે. ” જે નારક છે છઠ્ઠી અને સાતમી નરકમાં હોય છે તેઓ મહાવેદનાવાળા હોય છે. અને ઉપર્યુક્ત જવાબના આધારે તો તેમને મહાનિર્જરાવાળા પણ કહી શકાય! તે શું તેઓ શ્રમણ નિ કરતાં મહાનિ જેરાવાળા દેય છે?
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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