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________________ भगवती एवं महावेदनस्य अत्यन्त दुःख युक्तस्य जीवस्य, अल्पवेदनस्य अल्पदुःखयुक्तस्य च जीवस्य मध्ये किम् सः जीवः श्रेयान् ? उत्तमो वर्तते यः प्रशस्तनिर्जरकः ? कल्याणानुवन्धः निर्जरावान् भवति ? इति द्वितीयः प्रश्नः भगगनाह-'हंता, गोयमा ! जे महावेयणे एवं चेव त्ति, हे गौतम ! हन्त, सत्यम् , यो महावे. दनो भवति स एवमेव-महानिर्जरको भवति, यश्च महानिर्जरका, स महावेदनो भवति, इति प्रथमप्रश्नस्योत्तरम् । अत्रमहोपसर्गकाले भगवान् महावीर उदाहरणम् । महावेदनस्य अल्पवेदनस्य च मध्ये प्रशस्तनिर्जरावान् कल्याणानुवन्धनिर्जरावान् जीवः श्रेयान् भवति, इति द्वितीयप्रश्नोत्तरम् अत्रापि उपसर्गानुपसर्गावस्थामावेयणस्स य अपवेयणरस य सेए जे पसत्थनिज्जराए ) जो महोवेदना से-अत्यन्त दुःखसे-युक्त है ऐसे जीवके और जो अल्पवेदनासे युक्त है ऐसे जीव के बीच में क्या वह जीव उत्तम होता है जो कल्याणानुबंधी निर्जरा वाला होता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं (हंता, गोयमो) हां गौतम ! (जे महावेयणे एवं चेत्र ति) यह बात सत्य है-जो जीव महावेदना वाला होता है वह महानिर्जरोवाला होता है। और जो जीव महानिर्जरावाला होता है वह महावेदनावाला होता है-इस प्रकार से यह प्रथम प्रश्न का उत्तर है-इस विषय में महा उपसर्ग के समय में-भगवान महावीर का उदाहरण समझना चाहिये। महावेदनावाले और अल्पवेदनावाले जीव के बीच में प्रशस्तनिर्जरावाला-कल्याणानु. बंधी निर्जरा वाला जीव श्रेष्ठ-उत्तम होता है इस प्रकार का यह द्वितीय प्रश्न का उत्तर है-यहां पर भी उपसर्ग और अनुपसर्ग अवस्था को "महावेयणस्स य अप्पवेयणस्स य सेए जे पसत्थनिज्जराए " मडाव:નાથી યુક્ત (અત્યંત દુખથી ચુક્ત) જીવ અપવેદનાથી યુક્ત જીવમાંથી શું એ જીવ ઉત્તમ હોય છે કે જે કલ્યાણાનુબંધી નિરાવાળો હોય છે? गौतम स्वाभान प्रश्नन। नाम मापता महावीर प्रभु ४३ छ-"हता गोयमा !" , गौतम ! (जे महावेयणे एवं चेव त्ति ) ये बात साथी છે કે જે જીવ મહાદનાવાળો હોય છે, તે મહાનિ જેરાવાળો હોય છે. આ પહેલા પ્રશ્નનો ઉત્તર છે. આવિ ષયમાં ભગવાન મહાવીરે સહન કરેલા મહા ઉપસર્ગોનું દૃષ્ટાંત આપી શકાય. બીજા પ્રશ્નનો ઉત્તર-મહાદનાવાળા અને અ૫વેદનાવાળા જીવોની અપેક્ષાએ પ્રશસ્ત-નિર્જરાવાળા (કલ્યાણાનુબંધી નિર્જરાવાળો) જીવ શ્રેષ્ઠ હોય છે. અહીં પણ ઉપસર્ગ અને અનુપસર્ગ અવસ્થાને આધારે મહાવીર પ્રભુનું ઉદાહરણ આપી શકાય તેમ છે. હવે ગૌતમ સ્વામી મહાવીર પ્રભુને ત્રીજો પ્રશ્ન પૂછે છે
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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