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________________ प्रमे पथन्द्रिका टी० ०५ १० ९ सू. २ प्रकाशान्धकारस्वरूपनिरूपणम् १९७ गौतमः पृच्छति-'चउरिदियाणं भंते ! किं उज्जोए, अंधयारे ? हे भदन्त ! चतुन्द्रियाणां जीवानाम् किम् उद्योतः प्रकाशोभवति, अन्धकरो वा ? भगवानाह-- 'गोयमा ! उज्जोए वि, अंधयारे वि' हे गौतम ! चतुरिन्द्रियाणां स्पर्शादिचक्षुःपर्यन्तेन्द्रियविशिष्टानां जीवानाम् उद्योतोऽपि-कदाचित् प्रकाशोऽपि भवति, कदाचित् अन्धकारोऽपि । गौतमः पृच्छति-से केणडेणं ? ' हे भदन्त ! तत् केनार्थेन चतुरिन्द्रियाणाम् उद्योतोऽपि, अन्धकारोऽपि च भवति ? भगवानाह'गोयमा ! चउरिदियाणं सुभा असभा य पोग्गला सुभे असुभे य पोग्गलपरिणामे हे गौतम! चतुरिन्द्रियाणां जीवानां शुभाः अशुभाश्च पुद्गलाः भवन्ति, तेषां चक्षु. के विषय में प्रभु से पूछते हैं कि (चउरिदियाणं भंते । किं उज्जोए अंधयारे) हे भदन्त ! चौइन्द्रिय जीवों के यहां प्रकाश होता है या अंधकार होता है ? इसके उत्तर में प्रभु उनसे कहते हैं (गोयमा) हे गौतम! (उज्जोए वि अंधयारे वि) उनके पास उद्योत भी होता है, और अधकार भी होता है ? स्पर्शन, रसना, घ्राण और चक्षु ये चार इन्द्रियां जिनके होती हैं वे चौइन्द्रिय जीव कहलाते हैं-ये कदाचित् प्रकाश सहित भी होते हैं और कदाचित् अंधकार सहित भी होते हैं। इस विषय में कारण को जानने की इच्छा से गौतम स्वामी प्रसु से पूछते हैं कि (से केणटेणं ) हे भदन्त ! ऐसा आप किसी कारण से कहते हैं कि चौइन्द्रिय जीव प्रकाश सहित भी होते हैं और अंधकार सहित भी होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु उनसे कहते हैं (गोयमा) हे गौतम! (चरिदिया णं सुभासुभाय पोग्गला सुभेऽसुभे य पोग्गलपरिणामे) હવે ગૌતમ સ્વામી ચતુરિન્દ્રિય જીના વિષયમાં આ પ્રમાણે પ્રશ્ન પૂછે छे-(चररि दियाणं भंते ! कि उज्जोए अंधयारे१) महन्त ! यतुशिन्द्रय જેનાં આશ્રયસ્થાનમાં પ્રકાશ હોય છે, કે અંધકાર હેય છે? महावीर प्रभु ४ छ-( उज्जोए वि अंधयारे वि) गीतम!' भनi આશ્રય સ્થાનમાં પ્રકાશ પણ હોય છે અને અંધકાર પણ હોય છે. જે જીવને २५शन (यामडी), २सना (OH), प्राय (118), मने यक्षु राय छ, તેમને ચતુરિન્દ્રિય જી કહે છે. તેઓ કયારેક પ્રકાશ સહિત પણ હોય છે અને કયારેક અંધકાર સહિત પણ હોય છે. હવે તેનું કારણ જાણવા માટે ગૌતમ સ્વામી આ પ્રકારનો પ્રશ્ન પૂછે छ-" से केणठेणं " B महन्त ! मा५ । आरणे मे ४ा छ। यतुरिन्द्रिय છાને પ્રકાશ મળે છે પણ ખરો અને અંધકાર પણ મળે છે? "* तेन वा माता महावीर प्रभु छ “गोयमा !" गौतम ! भे०८८
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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