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________________ દરે भगवतीसूत्रे टीका 'सेणूणं भंते! दिया उज्जोए, राई अंधयारे?' गौतमः पृच्छति हे भदन्त । तत् किम् नूनं निश्चितं दिवा दिवसे उद्योतः प्रकाशः, रात्रौ च अन्धकारो भवति ? भगवान् आह - हंता, गोयमा ! जाव - अंधयारे ' हे गौतम ! हंत सत्यम्, यावत्दिवा उद्घोतः, रात्रौ अन्धकारश्च भवति । गौतमस्तत्र हेतुं पृच्छति - ' से केण डेणं ० ' हे भदन्त । तत् केनार्थेन दिवा प्रकाशः, रात्रौ चान्धकारो भवति १ । भगवान् तत्र हेतुं प्रतिपादयति 'गोयमा दिया सुभा पोग्गला, सुभे पोग्गलपरिणामे ' गौतम ! दिवा दिवसे शुभाः पुद्गला भवन्ति, दिनकरकिरणसम्पर्कात्, शुभश्च टीकार्थ -- पुद्गल के अधिकार को लेकर ही सूत्रकार उस विषय संबंधी विशेष वक्तव्यता का कथन करते हैं - इसमें गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है कि - ( से णूणं भंते! दिया उज्जोए राई अंधारे ? ) हे भदन्त ! दिन में प्रकाश और रात्रि में अंधेरा होता है यह निश्चित है न ? इस के उत्तर में प्रभु गौतम से कहते हैं कि (हंता गोयमा जाव अंधारे) हां गौतम ! यह निश्चित है दिन में प्रकोश और रात्रि में अंधकार होता है । इस पर गौतम प्रभु से पुनः प्रश्न करते हैं कि ( से hi) हे भदन्त | ऐसा जो होना है सो क्यों होता है ? अर्थात् दिन में प्रकाश और रात्रि में अंधेरा जो होता है सो उसके होने में क्या कारण है ? इसके समाधान निमित्त प्रभु गौतम से कहते हैं कि (गोयमा) हे गौतम! ( दिया सुभा पोग्गला, सुभे पोग्गलपरिणामे ) दिवस में शुभ पुद्गल रहते हैं और शुभ पुद्गल परिणाम होता है अर्थात् ટીકા --~પુદ્ગલાના અધિકાર ચાલી રહ્યો છે, તેથી સૂત્રકાર પુદ્ગલાનું વિશેષ નિરૂપણ કરવાને માટે નીચેના પ્રશ્નોત્તરા આપે છે— ગૌતમ સ્વામી મહાવીર પ્રભુને એવા પ્રશ્ન પૂછે છે કે “ दिया उब्जोए राई अधयारे ? ) हे लहन्त ! ये बात तो निश्चित ? छे ने सेणू भंते! દિવસે પ્રકાશ અને રાત્રે અંધકાર હાય છે ? તેના જવાબ આપતા મહાવીર अलुछे - ( हंता गोयमा ! जाव अंधयारे ) डा, गौतम ! मे बात तो નિશ્ચિત છે કે દિવસે પ્રકાશ અને રાત્રે અધકાર હોય છે. તેનું કારણ જાણવા માટે ગૌતમ સ્વામી પૂછે છે કે सेकेणट्टेणं ? ” हे लहन्त ! आाय शा अरथे એવું કહા છે કે દિવસે પ્રકાશ અને રાત્રે અધકાર હાય છે ? મહાવીર પ્રભુ ४ छे-“ गोयमा ! ” डे गौतम! ( दिया सुभा पोग्गला, सुमे पोगलपरिणामे ) ८८ એટલે કે દિવસે શુભ પુત્લા હાય છે અને શુભ પુદ્ગલ પરિણામ હેાય છે. સૂર્યનાં કિરણેાના 'પથી પુદ્ગલ પરિણામ શુલ હાય છે, પ राई असुभा ,
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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