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________________ অনিম্নগ্ধা খ্রীদ্ধা ছ০ ৭ ০ ২ ০ ২ ঞ্জাহাঁদাংঘনিজ ধর্থ यिकाः । चतुरिन्द्रियाणाम् भदन्त ! किम् उद्घोतः, अन्धकारः ? गौतम ! उद्घोतोऽपि, अन्धकरोऽपि । तत् केनार्थेन ? । गौतम ! चतुरिन्द्रियाणां शुभाऽशुभाश्च पुद्गलाः, शुमाऽशुभश्च पुद्गलपरिणामः, तत् तेनार्थन० । एवं यावत्मनुष्याणाम् । वानव्यन्तर-ज्योतिष्क-वैमानिका यथाऽमुरकुमाराः ।। सू० २ ॥ एकेन्द्रिय से लेकर यावत् ते इन्द्रिय तक के जीवों में नारक जीवों की तरह से जानना चाहिये। (चउरिदिया णं भंते ! किं उज्जोए अंधयारे) हे भदन्त ! चौ इन्द्रिय जीवों के क्या प्रकाश होता है या अंधकार होता है? (गोयमा) हे गौतम ! (उज्जोए वि अंधयारे वि) उद्योत भी होता है और अंधकार भी होता (सेकेणद्वेणं) हे भदन्त ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि चौ इन्द्रिय जीवों के प्रकाश भी होता है और अन्धकार भी होता है (गोयमा) हे गौतम! (चरिदियाणं स्लभासुभा य पोग्गला, सुभालुभे य पोग्गलपरिणामे) चौ इन्द्रिय जीवों के शुभ और अशुभ पुगल होते हैं और शुभ एवं अशुभ पुगल परिणाम होता है । (से तेणष्टेणं) इस कारण मैंने ऐसा कहा है। (एवं जाव मणुस्साणं -वाणमंतर-जोइल-वेमाणिया जहा असुरकुमारा) इसी तरहसे यावत् मनुष्योंके भी ऐसा ही होता है । वानव्यन्तर, ज्योतिषिक और वैमानिक देवों के यहाँ असुरकुमारों की तरह से ही जानना चाहिये। પૃથ્વીકાયિક એકેન્દ્રિથી લઈને ત્રીન્દ્રિય પર્યન્તના જીવન વિષયમાં પણ ना२४ । प्रभारी ४ समनपु. ( चारिदिया णं भंते ! कि उज्जोए अधयारे ) હે ભદન્ત! ચતુરિન્દ્રિય અને શું પ્રકાશ મળે છે કે અંધકાર મળે છે ? (गोयमा!) 3 गौतम ! (उज्जोए वि अंधयारे वि) त्या प्रश ५ डाय छ म म २ प डाय छे. (से केणठेणं) सह-त ! मा५ ।। रणे मे ४डा छ।१ (गोयमा!). गौतम! चरिंदियाणं सुभासुभा य पोग्गला, सुभासुमेय पोग्गलपरिणामे ) तुरिन्द्रिय वान युद्ध शुभमने अशुभ डाय छ, ते पुदीनु शुभ मन मशुम पुरस परियाम डाय छे. (स तेणठेण') ते २0 से पुछे. (एव जाव मणुस्साणं, वाणमतर-जोइस, वेमा. णिया जहा असुरकुमारा) मनुष्याने ५५ यतुरिन्द्र ०। प्रभा प्रश અને અંધકાર બને મળે છે. વાતવ્યન્તર, તિષિક અને વૈમાનિકેના નિવાસસ્થામાં પણ અસુરકુમારની જેમ પ્રકાશ સમજે.
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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