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________________ प्रमेयचन्द्रिका टी०।०५३०८सू०१ पुद्गलस्वरूपनिरूपणम् १३३ एत्तो खेत्ताएसेणं चेव सपएसिया असंखगुणा, एगपएसोगाढे मोत्तुं सेसाऽवगाहणया, ते पुण दपएसोगाहणाइया सच्चपोग्गला सेसा, तेय असंखेज्जगुणा अवगाहणट्ठाण बाहुल्ला, दव्वेण होति एत्तो, सपएसा पोग्गला विसेसऽहिया, कालेण य भावेण य, एमेव भवे विसेसऽहिया, भावाइया वुड्डी, असंखगुणिया जं अपएसाण, ___तो सप्पएसियाणं, खेत्ताइविसेसपरिखुड्डी । " एत्तो खेत्ताएसेणं चेव सपएसिया असंखगुणा, एगपएसोगाढे मोतुं सेसावगाहणया" ॥ ____एक प्रदेश में अवगाही पुद्गलों को छोडकर शेष पुनलों की-जो कि आकाश के दयादिक प्रदेशों में अवगाही हो रहे हैं-अपेक्षा लेकर क्षेत्रादेश द्वारा ही सप्रदेशिक पुगल उस एक एक प्राप्त राशि से अमं. ख्यात गुणित हैं। "ते पुण दुपएसोगाहणाझ्या सव्वपोग्गला सेसा, ते य असंखेज्ज गुणा अवगाहणट्ठाणबाहुल्ला" यहां पर आकाश द्वथादिक प्रदेशों में अवगाहीहुए पुद्गलों को जो असंख्यात गुणित प्रकट किये गये हैं-उसका कारण यह है कि अवगा. हनास्थान असंख्यात गुणित हैं। "दब्वेण होति एत्तो सपएसा पोग्गला विसेसाहिया कालेण य भावेण य एमेव भवे विसेसाहियो भावाइयावुड़ी असंखगुणिया जं (एत्तो खेत्ताएसे णं चेव सपएसिया असंखगुणा, एगपएसोगाढे मोत्तु सेसा. वगाहणया) में प्रशनी Aqाना पुरस सिवायनi Yसारे આકાશના બે, ત્રણ આદિ પ્રદેશોની અવગાહના કરીને રહેલાં હોય છે, તેમની અપેક્ષાએ ક્ષેત્રાદેશથી જ સપ્રદેશિક પુદ્ગલે અસંખ્યાતગણુ છે. (ते पुण दुपएसोगाहणाइया सव्वपोग्गला सेसा, ते य .असंखेज्जगुणा अवगाहणाणबाहुल्ला ) मी माशना मे, जणु मा प्रदेशमा २९i Y લેને જે અસંખ્યાતગણું કહ્યા છે તેનું કારણ એ છે કે અવગાહનાસ્થાન मसभ्यात! छे. (दव्वेण होंति एत्तो सपएसा पोगला विसेमाहिया कालेण य भावेण य एमेव भरे विसेसाहिया भावाइयावुदी असंलगुणिया में अपएखाणं, तो सम्पए.
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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