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________________ ५९८ ___. .... भगवतीसूत्र देशाः असंख्येयगुणाः, द्रव्यादेशेन सप्रदेशाः विशेषाधिकाः, कालादेशेन सप्रदेशाः विशेषाधिकाः, भावादेशेन सपदेशाः विशेषाधिकाः । ततः खलु स नारदपुत्रोऽन. गारः निर्ग्रन्थीपुत्रम् अनगारस् वन्दते, नमरयति, वन्दिन्या, नमस्यित्वा एतमर्थ सम्यग् विनयेन भूयोभूयः क्षमयति, क्षमयित्वा, संयमेन, तपसा, आत्मानं भावयन् विहरति ।। सू० १ ॥ रहित है वे इनकी अपेक्षा असंख्यात शुणित हैं । (खेत्तादेसेणं अपएसा असंखेज्जगुणा ) जो पुद्गल क्षेत्र की अपेक्षा अप्रदेश हैं, वे इनकी अपेक्षा से असंख्यातगुणे हैं। (खेत्तादेसेणं चेव सपएसा असंखेज्जगुणा) तथा जो पुद्गल क्षेत्र की अपेक्षा प्रदेश सहित कहे गये हैं वे पुद्गल इन पुद्गलों की अपेक्षा असंख्यात गुणित हैं । (दव्वादेसेणं सपएसा विसे साहिया) द्रव्य की अपेक्षा से जो पुद्गल प्रदेश सहित कहे गये वे पुद्गल इन पुद्गलों की अपेक्षा कुछविशेष रूप से अधिक हैं। (कालादेसेणं सपएसा घिसेसाहिया) काल की अपेक्षा लेकर जो पुद्गल प्रदेश कहे गये हैं वे पुद्गल इन विशेषाधिक पुद्गलोंकी अपेक्षासे भी विशेपाधिक है। (भावादेसेणं सपएसा विसेसाहिया) तथा-भाव की अपेक्षा से जो पुद्गल सप्रदेश हैं वे इन पूर्वोक्त विशेपाधिक पुगलों की अपेक्षा के भी और विशेषाधिक हैं। (तएणं से नारयपुत्ते अणगारे नियंठिपुत्त अणगारं वंदह नमसइ) इस के बाद नारदपुत्र अनगार ने निर्ग्रन्थी पुत्र अनगार को वंदना कीउन्हें नमस्कार किया (वंदित्ता नमंसित्ता एयं अटुं सम्म विणएणं છે, તેઓ કાળની અપેક્ષાએ પ્રદેશ રહિત યુદ્ધ કરતાં અસંખ્યાત ગણા છે (खेत्तादेसेणं अपएसा असखेज्जगुणा) क्षेत्रनी अपेक्षा प्रदेश २डित छ, तगा तना ४२i ५९ सय गएछ. (खेत्तादेसेण चेव सपएसा असंखेज्जगुणा ) तथा युद्ध क्षेत्रनी अपेक्षा प्रशस्त छ. तसा तेना ४२di by PAAV यात गए। छे. (दव्यादेसेण सपएसा विसेसाहिया) द्रव्यनी અપેક્ષાએ જે પુલને પ્રદેશયુક્ત કહ્યાં છે, તેઓ તે પુલો કરતાં થોડાં विशेषाधि४ छ. ( कालादेसण सपएसा सिसा हिया) नी अपेक्षा પદ્રલેને પ્રદેશયુકત કહ્યાં છે, તેઓ પૂર્વોકત વિશેષાધિક પલે કરતાં પણ विशेषाधि डाय छे. ( भावादेसेणं सपएसा विसेसाहिया) तथा सानी भये. ક્ષાએ જે પુલે પ્રદેશયુક્ત હોય છે, તેઓ પૂર્વોક્ત વિશેષાધિક પુદ્ગલ કરતાં ५ विशेषाधि डाय छे. (तएणं से नारयपुत्ते अणगारे नियंठिपुत्तं अणगार पंदइ नमसइ) त्या२मा नारहपुत्र मारे निथीपुत्र मारने । परी मन भने नभ२४२ ४ा. (वत्तिा नमंत्रित्ता एवं अर्द्ध सम्म विणणं
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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