SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 610
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ shrafter टी० २०५ ३० ७ सू० ७ पुद्गलस्वरूपनिरूपणम् ५९१ ततः खलु स नारदपुत्रः अनगारः निर्ग्रन्थीपुत्रम् अनगारं एवमवादीत् द्रव्यादेशेनापि मे आर्य | सर्व पुलाः साधः, समध्याः, समदेशाः, नो अनर्घाः, अमध्याः, अप्रदेशा, क्षेत्रादेशेनापि, कालादेशेनापि, भावादेशे नापि, एत्रमंत्र । ततः खलु स निर्ग्रन्थीपुत्रः अनगारः नारदपुत्रम् अनगारम् एवम् अवादीत् - यदि खलु हे आर्य ! द्रव्यादेशेन सर्वपुद्गलाः सार्धः समध्याः, समदेशाः, नो अनर्धा, अमध्याः, हैं ? अथवा - काल की अपेक्षा लेकर हे आर्य ! आप ऐसा पूर्वोक्तरूप से कहते हैं ? यो भाव की अपेक्षा से ऐसा आप पूर्वोक्तरूप से कहते हैं ? (तएण से नारयपुते अणगारे नियंठितं अणगारं एवं वयासी) इस प्रकार सुनकर नारदपुत्र अनगार ने निर्ग्रन्थीपुत्र अनागार से ऐसा कहा - ( दव्वादेसेणं वि मे अज्जो ! सव्वपुग्गला स अड्डा, समझा, सपएसा, णो अड्डा, अमज्झा अपएंसा खेत्ता देसेण वि, भावांदेसेण वि एवं चेव) हे आर्य ! हमारी मान्यता के अनुसार द्रव्य की अपेक्षा से भी, समस्त पुद्गल अर्धभाग सहित हैं, मध्यभाग सहित हैं, प्रदेश सहित हैं, अर्धभाग, मध्यभाग और प्रदेश से रहित नहीं हैं । इसी प्रकार से वे समस्त पुगलक्षेत्र की अपेक्षा से भी हैं, काल की अपेक्षा से भी हैं, और भाव की अपेक्षा से भी हैं । (तरणं से नियंत्रिपुत्ते अणगारे नारयन्तं अणगारं एवं वयासी-जइणं हे अज्जो | दव्वादेसेण सव्वपोग्गला स अड्डा, समझा, सपएसा, जो अणड्डा, अमज्झा अपएमा - एवं ते परमाणुपोग्गले वि सअड्डे, समझे, सपएसे जो अण्डे अमज्झे આય ! આપ શું ક્ષેત્રની અપેક્ષાએ એવું કહેા છે કે સમસ્ત પુદ્ગલ અભાગ આદિથી યુક્ત છે? `અથવા હૈ આય ! આપ શું કાળની અપેક્ષાએ પૂર્વક્તિ માન્યતા ધરાવેા છે ? અથવા આપ ભાવની અપેક્ષાએ એ પ્રકારની भान्यता धरावा हो ? ( तएण से नारयपुत्ते अणगारे नियंठिपुत्तं अणगा एवं बयासी ) त्यारे नारहपुत्र आशुगारे निर्थथीपुत्र शुभारने भा प्रभा अधु ( दव्वादेसेण वि मे अज्जो ! सव्त्रपुग्गला, सअड्ढा, समझा, सपएसा, णो अणड्ढा, अमज्झा, अपएसा खेत्ता देसेण वि, कालादेसेण वि, भावादेसेण वि एव' चैत्र ) हे आर्य | अभारी मान्यता भु द्रव्यनी अपेक्षा यागु समस्त પુદ્ગલ અધ ભાગ સહિત, મધ્યભાગ સહિત અને પ્રદેશ સહિત છે, અધભાગ, મધ્યભાગ અને પ્રદેશથી રહિત નથી. ક્ષેત્રની અપેક્ષાએ, કાળની અપેક્ષાએ અને ભાવની અપેક્ષાએ પણ અમે સમસ્ત પુદ્ગલેને ઉપર કહ્યા પ્રમાણે અધ ભાગ माहिथी युक्त हे म भानो छीओ. (तरण से नियठिपुत्ते अणगारे नारयत्तं अणगारं एवं वयासी-जइण हे अज्जो ! दव्वादेसेण सव्व पोग्गला स अड्ढा, समझा, खपएसा, णो अणदुढा, अमज्झा, अपरसा - एव ते परमाणु
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy