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________________ प्रमैयचन्द्रिका टी० श० ५ उ० ७ सू० ८ हेतुस्यरूपनिरूपणम् , ५७७ नमरणं म्रियते करोति, मिथ्याष्टित्वेन सम्यग्ज्ञानरहितत्वात् , ५ । अथ मिथ्यादृष्टयपेक्षयैव हेतून प्रकारान्तरेणाह-पंच देऊ पण्णचा, तं जहाहेउणाण जाणइ,जाव-हेउणा अन्नापरणं मरई' पञ्च हेता पक्षालाः, तद्यथा-हेनुना न जानाति, ननः कुत्सार्थकतया अतव्यक्तण साध्यम् अवगच्छति, यागत-हेतुना न पश्यति,असम्यक्पश्यति, हेतुना न बुध्यते असम्यक्तया श्रद्धत्ते, हेतुना न अमितमागच्छति,असम्यक्त्रया प्राप्नोति, हेतुना अज्ञानमरणं कुत्सितमरणं म्रियते करोति । ___ अथ हेतुव्यतिरेकेण अहेतून प्रतिपादयितुमाह-'पंच अहेऊ पणत्ता,तं जहा- अहेतुं मरण करता है वह पांचवां हेतु है। मिथ्याष्टि के होने के कारण सम्यग्ज्ञानी के यह होता नहीं है अतः इसके करण को अज्ञानमरण कहा गया है। ___ अब सूत्रकार पुनः मिथ्यादृष्टि की अपेक्षा से ही हेतुओं का प्रकारान्तर से प्रतिपादन करते हैं-(पंच हेऊ पण्णता) हेतु पांच कहे गये हैं-(तं जहा) जो इस प्रकार से हैं-"हेजणा ण जाण जाय हेउणा अन्नाणमरणं मरह" यहां पर "न" का प्रयोग कुत्सा-निंदा अर्थ हुआ है-अतः जो असम्यक् रूप से साध्य को हेतु द्वारा जानना है, असम्यक रूप से जो हेतु द्वारा देखता है, असम्पक रूप से जो साध्य को हेतु द्वारा प्राप्त करता है, अप्रशस्त हेतु से युक्त अज्ञानमरण कुत्सितमरण जो करता है इस प्रकार ये पांच हेतु हैं। ___ अब हेतुओं से भिन्न जो अहेतु हैं उनको प्रतिपादन सूत्रकार करते हैं(पंचअहेऊ पण्णता) हे गौतम! पांच अहेतु कहे गये हैं-यहाँ केवली भगઅધ્યવ્યવસાય આદિ હેતુ સહિત અજ્ઞાન મરણ મરવું તે પાંચમો હેતુ છે આ પ્રકારનું મરણ સમ્યજ્ઞાની મરતો નથી, પણ મિથ્યાદૃષ્ટિ જ આવું મરણ (અજ્ઞાન મરણ) પ્રાપ્ત કરે છે હવે સૂત્રકાર મિથ્યાષ્ટિને અનુલક્ષીને બીજી રીતે હેતુઓનું પ્રતિપાદન ४रे छ. (पंच हेऊ पण्णत्ता) उतु पांय ह्या छ, (तजहा) २ मा प्रभारी छ-(हेउणा ण जाणइ, जाव हे उणा अन्नाणमरणं मरइ) मी ! 'न'नो प्रयोग કુત્સા (નિંદા) ના અર્થમાં થયે છે તેથી જે અસમ્યક્ રૂપે સાધ્યને હેતુ દ્વારા જાણે છે, અસમ્યફ રૂપે સાધ્યને હેતુ દ્વારા દેખે છે, જે અસમ્યફ રૂપે સાધ્ધની હેતુ દ્વારા શ્રદ્ધા કરે છે, જે અસમ્યફ રૂપે સાધ્યને હેતુ દ્વારા પ્રાપ્ત કરે છે, અને જે અપ્રશસ્ત હેતુથી યુક્ત અજ્ઞાન-મરણને પ્રાપ્ત કરે છે, એવા પાચ હેતુ સમજવા. હેતુઓથી વિપરીત એવા અહેતુઓનું સૂત્રકાર હવે प्रतिपाईन रे छ-(पंच अहेऊ पण्णत्ता ) गौतम पांय गाडेतु ४ छे, (.तंजहा ) २ मा प्रमाणे छे. भ७३
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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