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________________ प्रमेयधन्द्रिका टी०२० उ०७० ७ नेयिकानां सारंभानार भादि निरूपणम् । -दह-नईओ' अगड-तडाग-इद नघः परिगृहीताः भवन्ति, तत्र अगडः कूपः, तडागः-सरोवरः इदा-गृहज्जलाशयः, द्रह इति भाषा, प्रसिद्धः ‘वावि., एक्खरिणि, दीहिया, गुंजालिया, सरा, सरपंतियाो, विलपंतियाओ परिग्गहिया भवंति' वाप्यः, पुष्करिण्यः, दीपिकाः, गुञ्जालिकाः, सरांसि, सरपङ्क्तयः, सर सरपडूक्तयः, परिगृहीता भवन्ति, तत्र वाप्या चतुरस्रो जलाशयविशेषाः, पुष्करिण्यः-वर्तुला जलाशयविशेषः, दीपिका:-आयत जलाशयविशेषाः, गुञ्जालिकाः वक्रजलाशयविशेषाः, सरांसि-तरागाः, सरः पङ्क्तयः, तडागश्रेणयः, सरस्सर पङ्क्तयः, तडागपरम्पराश्रेणयः, विलपङ्क्तयः जलनिर्गमनालिकाश्रेणयः, वग्री है। इन सब स्थानों पर तिर्यश्च जीव-रहते हैं अतः ये स्थान इनके बारा परिगृहीत होने के कारण इनके परिग्रह केविषयभूत प्रकट किये हैं (अगड-तडोग-दह-नईओ वावि-पुक्खरिणी-दीहिया गुजालिया-सेरा -सरपंतियाओ-सरसरपंतियाओ-बिलपतियाओ-परिग्गहिया भवति ) अगड़कूप, तडाग-सरोवर, हृद-द्रह बड़ाभारी जलाशय और नदियों, इन सब स्थानों पर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों का आवास रहता है-अतः इन स्थानोंको इनके परिग्रह का विषयभूत प्रकट किया गया है। चोर कोनों घालो जो जलाशय होता है उसका. नाम वापी है-गोलाकार जो जलाशय होता है उसका नाम पुष्करिणी है। लंबा चौडा जो, जलाशय होता है उसका नाम दीधिका है । टेडामेड़ा जो जलाशय होता है उसका नाम गुञालिका है। सामान्यतालाब का नाम सर और इस सर की जो श्रेणियां होती हैं उसका नाम सरपंक्ति है। तडागों की परम्परा से जो पंक्तियां हुआ करती हैं वह सरस्सरपंक्ति है । जलको बाहिर निकालने પંચેન્દ્રિય તિય રહેતા હોય છે. તેથી તેઓ તે સ્થાને પરિગ્રહ કરે છે, मेम अपामा मा०युं, छ. (.अगड, तडाग, दह, नइओ वावि, पुक्खरिणी, दीहिया, गुंजालिया, ...सरा, सरपंतियाओ, सरसरपतियाओ, पिलपतियाओ परिगहिया. भवति)पा, તળા, સાવરે, નદીઓ આદિ, સ્થાને પર પંચેન્દ્રિય તિય"ચ જીવન રહે &0 डाय, छ. .तेथी .ते, स्थानानी तथा परियड ४रे छ, मेमवामा मा०यु,छ. यार मापा .शयन वापी (१) ४९ छ. सारना જળાશયને પુષ્કરિણું કહે છે. લાંબું પહોળું જે જળાશય ય છે તેને જીવિંકા કહે છે. વાંકાચૂંકા જળાશયને શું જાલિકા કહે છે. સામાન્ય તળાવને સર કહે - છે એવાં સરોવરની શ્રેણિયેને સરપક્તિ કહે છે. સરવરેની પરમ્પરાથી જે २५तिया, मने थे. तभने १२५ १२५तिया, छ. MAHARमाथी पाela
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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