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________________ ५५२ . ......................... - भगवती ईपर्देवनम्रीभूतो: पर्वतप्रदेशाः परिगृहीता भवन्ति, · जल-थले विलं गुह-लेणा परिग्गहिया भवति' जल-स्थल-बिल-गुहा-लयनानि परिगृहीतानि भर्वन्ति, तंत्र-जल-स्थल विल-गुहाः प्रसिद्धाः, लयनम-उत्कीर्णगिरि गृहम् । 'उज्झर-निज्झर-चिल्लल-पल्लल-वप्पिणी परिग्गहिया भवंति ' अवझर-निझरचिल्लल-पलवल वाणि परिगृहीतानि भवन्ति, तत्र अवझर-गिरितटपोन्तात् उदकस्या धःपतनम् , निर्झरः जलस्रवणम् , चिल्ललम् कर्दममिश्रोदकंयुक्तो जलाशयों,' पल्वलम् ' अल्पजलाशयः प्राणिः केदाराः - संजलक्षेत्राणि, 'अगड - तडॉग" री-शिखरों वाले पर्वत, प्राभार-कुछ २ झुके हुए पर्वतप्रदेश ये सब परिगृहीत होते हैं अर्थात्-ये पंचेन्द्रियतिथंच जीव इन स्थानों पर रहते हैं और इन स्थानों को ये अपना मोनते रहते हैं (जल-थल-बिल-गुह-जेणापरिग्गहिया भवंति ) जलमार्ग, स्थलमार्ग और बिल तथा गुफाएँ: ये सब प्रसिद्ध स्थान हैं।' पर्वतों को काट ,कर जो घर बनाएँ जाते हैं: उनका नाम लयन हैं, इन सब स्थानों में ये पंचेन्द्रिय तिथंच रहते हैं। अतः इन स्थानों में रहने के कारण ये इन स्थानों को अपनी ममता का" विषयभूत बनाएं रहते हैं। ( उज्झर-निज्झर-चिल्लल-पल्लल-वप्पिणी -परिंग्गहिया भवंति) गिरितटके प्रान्त भाग से जल नीचे जहां गिरता है उस स्थान का नाम अंवझर है, जमीन के भीतर से जिस स्थान पर जल झरता है उसका नाम निर्झर है। कर्दम से मिश्र जल जिस जलाशय में भरा रहता है उसका नाम चिलेल-चिक्खल है। थोड़ा सा जल जिस जलाशय में होता है उसका नाम पल्वल है-भाषा में इसे पोखर ___ कहते हैं। खेतोंवाली अथवा तटचोला जो स्थान होता है उसका नाम (भु' पति), शिरी (शिमेशवाजi al), प्रामा२ ( सडेर सडर ઢળતા પ્રદેશ) પરિગ્રહીત થયેલાં હોય છે. એટલે કે તેઓ એ સ્થાન પર रहेछ भने त स्थानान तापाताना भान छे. (जल, थल, बिल, गुह, लेणा परिगहिया भवति) भाग, स्यामांग, ६२ वि. ना ४२, मुशमी, सयन (क्तान तरीन मनाei घरे) माहि स्थानन तमा परि કરે છે. એટલે કે તે સ્થાને ને પિતાનાં માનીને તેમાં વર્સવાટ કરે છે, અને ते स्थान। ५२ तेभन भभता मा डाय छे." ( उज्ज्ञर, निज्जर, चिल्लल, पल्लल, पपिणा परिगहिया भवति ) अप४२ (पवर्तनी मरथी नीय तरतl Rai), नि२ (भीनमाथी पता Regi), शिव-ABHA ( मिश्रित पाणु' જળાશય-ખાબોચિયું), પલ્વલ અથવા પિખર (ઘેડા પાણીવાળું જળાશય, તલાવંડી), વમ્પી (ખેતવાળાં અથવા કિનારાવાળા સ્થાને આદિ સ્થાનમાં
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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