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________________ प्रद्रिका टी० श०५ ०७०४ परमाणुपुलादीनां स्पर्शनानिरूपणम् ५०१ त्रिपदेशिकं स्पर्शितः स्पर्शं कारितः एव तथा स्पर्शयितव्यः स्पर्श कारयितव्यः यावत् अनन्तमदेशिकम् यावत्करणात् चतुप्रदेशिकादारभ्य असंख्यातप्रदेशिकपर्यन्तं संग्राहम् तथा च चतुष्पदे शिकस्कन्धमभृतिविषयेऽपि प्रथम त्रिकैरन्तमत्रिश विकल्पैः स्पर्शविषयकालापकाः स्वयमूहनीयाः । गौतमः पुनः पृच्छति'पिएसिएणं भंते । खंधे परमाणुप्रोग्गलं फुसमाणे पुच्छा' हे भदन्त ! त्रिदे शिकः खलु स्कन्धः परमाणु पुद्गलं स्पृशन किं देशेन देशं स्पृशति' इत्यादि नवविकल्पविषयिणी गौतमस्य पृच्छा प्रश्नः । भगवानाह - तृतीय छन अनुसार त्रिप्रदेशी स्कन्ध को स्पर्श करता है इसी प्रकार से वह यावत् अनन्त प्रदेशी स्कंध को भी स्पर्श करता है। यहां यावत् शब्द से श्रुतुप्रदेशी स्कन्ध से लेकर संख्यात प्रदेशी स्कन्ध, असंख्यात प्रदेशी स्कन्ध इन सब स्कन्धों का ग्रहण किया गया है। इस तरह चतुप्प्रदेशीक स्कन्ध से लेकर यावत् अनन्त प्रदेशी स्कन्ध को स्पर्श करने के विषय में प्रथम के तीन और अन्त के तीन विकल्पों को लेकर आलापक अपने आप बना लेना चाहिये । गौतम स्वामी पुनः प्रभु से पूछते हैं- तिपएसिएण भूते । खंधे परमाणुपोग्गलं फुरमाणे पुच्छा) हे भदन्त मेरी अब यह जानने की इच्छा हो रही हैं कि त्रिप्रदेशी स्कन्ध परमाणु पुद्गल को जो स्पर्श करता है वह किस पद्धति के अनुसार करता है ? क्या वह अपने एकदेश द्वारा परमाणुपुद्गल के एक देश का स्पर्श करता है ? इत्यादि पूर्वोक्त रूप से यहां नौ विकल्प प्रश्न के रूप में उद्घাवित कर लेना चाहिये | इस विषय में उत्तर देते हुए प्रभु गौतम से *ન્ધના સ્પર્શ કરે છે, એજ રીતે અનંત પ્રદેશી પન્તના સ્કન્ધાના મણ स्यशः ४९ छे. अहीं पर्यन्त ( यावत् ) पहथी थारथी दृश अहेशेोषाणा २४-धा, સખ્યાત- પ્રદેશી સ્કન્ધા અને અસખ્યાત પ્રદેશી સ્કન્ધા ગ્રહણ કરવામાં આવ્યા છે. આ રીતે ચાર પ્રદેશેાવાળા સ્કન્ધથી લઇને અન’ત પ્રદેશાવાળા સ્કન્ધ પ ન્તનો સ્કન્ધાની‘દ્વિદેશી સ્કન્ધ સાથેની સ્પનાના વિષ્યમાં આલાપા સમજી લેવા તે આલાપકાનાં જવાખાનાં સૂત્રામાં પહેલાં ત્રણ અને છેલ્લાં ત્રણ વિકપાના જ સ્વીકાર કરવા જોઇએ. હવે ત્રિપ્રદેશિ સ્કન્ધાની સ્પના વિષે ગૌતમ ,, स्वाभी प्रश्न पूछे छे-“ तिप्पए लिए णं मंते ! खंधे प्रमाणुपोगाल फुसमाणे पुच्छा ત્રિપ્રદેશી અન્ય પ્રમાણુ પુદ્ગલની સાથે કેવી રીતે સ્પર્શ કરે છે ? શું તે માતાના એક દેશથી તેના એક દેશના પશ કરે છે ? ઈત્યાદિ નવા પ્રશ્નો અહીં પૂછવા જોઈએ.
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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