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________________ १.४९६ 'अनन्तमदेशिकस्कन्धपर्यन्तं त्रिप्रदेशिकचन् सप्तमाष्टमनवमः विकल्पैः परमाणुपुद्गल'स्पर्शविषयक आलापको बोध्या, यावत्करणात्' चतुष्पदेशिक-पञ्चमदेशिक-पट प्रदेशिक-सप्तपदेशिका-प्टमदेशिकऽनवप्रदेशिक-दशप्रदेशिक - संख्यातमदेशिका , ऽसंख्यातप्रदेशिकाः संग्राहयाः । गौतमः पुनः पृच्छति-' दुप्पएसिएणं भंते ! बंधे परमाणुपोग्गलं फुममाणे पुच्छा ? ' हे भदन्त ! द्विप्रदेशिकः खलु स्कन्धः पर'माणुपुद्गल' स्पृशन् कि देशेन देशं स्पृशति १, देशेन देशान् स्पृशति २, देशेन 'तरह से वह चार प्रदेशी स्कन्ध से लेकर अनन्त प्रदेशी स्कन्ध तक के स्कन्धों को भी स्पर्श करता है. अर्थात् एक पुद्गल, परमाणु चार प्रदेशी .. स्कन्ध से लेकर अनन्त प्रदेशी स्कन्ध तक के स्कन्धों को जो स्पर्श करेगा सो इन्हीं ७-८-१ विकल्पों के अनुसार ही करेगा। यहां यावत् पद से चतुष्प्रदेशिक, पांच' प्रदेशिक, छह प्रदेशिक, सात - प्रदेशिक, आठ प्रदेशिक, नौ प्रदेशिक, दश प्रदेशिक संख्यात प्रदेशिक और असंख्यात प्रदेशिक स्कन्धों का-ग्रहण हुआ है। __ अब गौतम स्वामीप्रभु से पुनः पूछते हैं (दुप्पएसिए णं भंते ! खंधे परमाणुपोग्गलं फुसमाणे पुच्छा ) हे भदन्त ! हम यहतो समझ चुके हैं कि एक पुद्गलपरमाणु दूसरे पुद्गलपरमाणु को, द्विप्रदेशिक स्कन्ध को, त्रिप्रदेशिक स्कन्ध को एवं चार प्रदेशिक स्कन्धसे लेकर यावत् अनंतप्रदेशी स्कन्धों को किस रीतिसे स्पर्श करता है। अब हम यह और समझना चाहते हैं कि द्विप्रदेशी स्कन्ध परमाणुपुद्गलको किस रीति से स्पर्श करतो है ? क्या वह द्विप्रदेशी स्कन्ध परमाणुयुद्गल को जो स्पर्श करता है, सो अपने एकदेश द्वारा उसके एकदेश को स्पर्श करता है ? या उसके अनेक देशों को स्पर्श करता है ? या उसे सर्वरूप से स्पर्श करता है ? કરે છે, એ જ રીતે ચાર પ્રદેશિકથી લઈને અનન્ત પ્રદેશી કન્ધ પર્યન્તના અને સ્પર્શ કરે છે એટલે કે તેમની સાથે પરમાણુ પુલને સ્પર્શ सात, मा भने नवम वि४८५ अनुसार १ थाय छे. मही यावत्' (पर्यन्त) પદથી ચાર પ્રદેશિક, પાંચ પ્રદેશિક, છ પ્રદેશિક, સાત પ્રદેશિક, આઠ પ્રદેશિક, નવ પ્રદેશિક, દશ પ્રદેશિક, સંખ્યાત પ્રદેશિક અને અસંખ્યાત પ્રદેશિક સ્કને ગ્રહણ કરવામાં આવેલા છે. હવે ગૌતમ સ્વામી ક્રિપ્રદેશિક સ્કન્ધની पशन विष नीयन। प्रश्न पूछे छ-" दुप्पएसिए णं भंते ! खो परमाणुपोग्गल फुपमाणे पुच्छा" है महत! यो त भागु छु। विशि રકલ્પ પરમાણુ યુદ્દલને સ્પર્શ કેવી રીતે કરે છે? શું તે પિતાના એક દેશ (ભાગ) દ્વારા પરમાણુ યુદ્ધલના એક દેશને સ્પર્શ કરે છે, કે અનેક દેશને
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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