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________________ " प्रमेद्रिका टी० श०५ उ०७ सू०४ परमाणुपुद् गलदीनांस्पर्शना निरूपणम् ४९५ भवति यदा तु तस्यैकस्मिनाकाशप्रदेशे सूक्ष्मपरिणामतया द्वौ प्रदेशौ, अपरत्र एकः प्रदेगोऽवस्थितः स्यात् तदा एकाकाशप्रदेशस्थित प्रदेशद्वयस्यापि परमाणोः स्पर्शविषयतया 'सर्वेण देशौ स्पृशति' इति व्यपदेशो भवति यदा तु त्रिम देशिकः सूक्ष्मपरिणामत्वाद एकाकाशप्रदेशस्थितो भवति तदा 'सर्वेण सर्व स्पृशति' इति व्यपदिश्यते । जहा परमाणुपोगले तिप्पए सियं कुमाविओ एवं फुसावेयन्वो जाव - अणतपएसिओ' यथा परमाणुपुद्गलः त्रिदेशिकं स्पर्शितः स्पर्श कारितः, एवं तथा स्पर्शयितव्यः स्पर्श कारयितव्यः यावत् - अनन्तमदेशिकः तथा च चतुष्पदेशिकादारभ्य स्थित रहता है अपने निज के सर्वरूप से ही उस त्रिप्रदेशी स्कन्ध के एक देश को स्पर्श करता है ऐसा व्यवहार होता है और जब आकाश के एक ही प्रदेश में मृक्ष्म परिणाम से परिणत हो जाने के कारण उस त्रिप्रदेशी स्कन्ध के दो प्रदेश रहते हों और एक प्रदेश अन्यत्र अवस्थित हो तो ऐसी स्थिति में एक आकाश प्रदेश में स्थित वह प्रदेशद्रय उस परमाणु द्वारा अपने सर्वरूप से स्पर्शित होने के कारण (सर्वेण देशौ स्पृशति ) ऐसा व्यवहार होता है । और जब त्रिप्रदेशिक स्क सूक्ष्म परिणाम से परिणत होकर एक आकाश के प्रदेश में स्थित रहता है तब पुद्गल परमाणु उस सब को अपने सर्वरूप से स्पर्श करता हैइस स्थिति में नवम विकल्प सघ जाता है । ( जहा परमाणुपोग्गले तिप्पसियं कुसाविओ एवं फुलावेयन्वो जाव अनंतपएसओ) जिस " प्रकार से एक परमाणुपुद्गल त्रिप्रदेशी स्कन्ध को स्पर्श करतो है इसी 1 રહેતુ હાય છે, તે પેાતાના સમરત ભાગ વડે તેના એક જ દેશના સ્પશ કરી શકે છે. પણ જ્યારે આકાશના એક જ પ્રદેશમાં સૂક્ષ્મ પરિણામે પરિણમિત થઈ જવાને કારણે તે ત્રિપ્રદેશિક સ્કન્ધના એ પ્રદેશા રહેલા હાય છે અને એક પ્રદેશ અન્યત્ર રહેલા હાય છે ત્યારે એક આકાશ પ્રદેશમાં રહેલા તે એ પ્રદેશાના તે પરમાણુના સમસ્ત ભાગ વડે સ્પર્શી થાય છે. તેથી જ " सर्वेण देशौ स्पृशति " या उथननुं प्रतिपादन थाय छे भने ल्यारे त्रिहेશિક સ્કન્ધ સૂક્ષ્મ પરિણામે પરિણમીને આકાશના એક પ્રદેશમાં રહેલા હાય છે, ત્યારે તે પુદ્ગલ પરમાણુ પેાતાના સમસ્ત ભાગથી તે આખા ત્રિપ્રદેશિક २४न्धना स्पर्श ४रे छे. या रीते " सर्वेण सर्व स्पृशति " मा नवमां विश्ह्यनुं પણ પ્રતિપાદન થઈ જાય છે. जहो परमाणुपोग्गले तिप्पए सियं फुसाविओ एव' फुसावेयत्रो जाव ria एसिओ " ” જે રીતે એક પરમાણુ પુદ્ગલ ત્રિપ્રદેશિક સ્કેન્યના સ્પ ८८
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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