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________________ प्रमेयचन्द्रिका टी००५३०७ सु०४ परमाणुपुद्गलादीनां स्वर्शनानिरूपणम् ४११ स्पृशति ५, ' णो देसेहिं सव्वं फुसइ ' नो देशैः सर्वं स्पृशति ६, ' णो सव्वेणं देसं फुसइ 'नो सर्वेण देशं स्पृशति ७, 'णो सन्वेणं देसे फुपइ' नी सर्वेण देशान् स्पृशति ८, अपितु सव्वेणं सव्वं फुसइ ' सर्वेण सर्वं स्पृशति ९ सर्वेण - स्वस्य सर्वात्मना सर्व - परस्य सर्वभागं स्पृशति । अत्र परमाणोर्निरंशत्वेन आद्यानामष्टाना मसंभवात् ' सर्वेण सर्वम्' इति नवमी विकल्पः स्वीकृतः ९ ' एवं परमाणुपोग्गले 6 दूसरे पुद्गल परमाणु के एक देश का स्पर्श करके उसे छूना हो ( णो देसे हिं देसे फुस ) अपने अनेक देशों द्वारा उसके अनेक देशों का स्पर्श करके उसे छूता हो (णो देसेहिं सव्वं फुसइ) अपने अनेक देशों द्वारा उसका पूर्णरूप से स्पर्श कर उसे छूता हो जो सव्वेणं देस फुसइ णोः सव्वेणं देसे (सइ) तथा न अपने समस्त भाग द्वारा उसके एक देशका स्पर्श करता हो, अथवा अपने समस्त भाग द्वारा उसके अनेक देशों का स्पर्श करता हो किन्तु (सव्वेणं सव्वं फुसइ) वह तो अपने समस्त से उसके समस्त का ही स्पर्श करता है । तात्पर्य कहने का यह है कि यहां पर जो" एक पुद्गल परमाणु दूसरे पुद्गल परमाणु का स्पर्श किस पद्धति के अनुसार करता है इस विषय में नौ विकल्प उठोकर विचार किया गया है । प्रथम विकल्प में शंकाकार ने ऐसा पूछा है कि जब एक परमाणु दूसरे परमाणु का स्पर्श करता है तो क्या वह उस समय अपने एक भाग से एक अंश से उसके एक भाग का एक अंश का स्पर्श करता है ? या उसके अनेक भागों को स्पर्श करता है ? या अपने एक " "" लागो 'वडे तेना भेड लागनेा स्पर्श तु नथी. ' णो देसे 'ह' देसे फुसइ "" ते घोताना अनेऊ लागोनो स्पर्श यशु अस्तु नथी, “ णो देसेहि सव्व फुसइ તે પેાતાના અનેક ભાગેાથી તે સમસ્ત પમાણુ પુદ્ગલના પણ સ્પર્શી કરતું नथी, णो सव्वेण देख फुपइ " ते येताना समस्त लागोथी तेना येऊ लागना स्पर्श' ४२तु ं नथी, “ णो सव्वेण देसे फुसइ " अथवा ते खाणे या ५२. भागु तेना धाया लागोनो स्पर्श तु नथी, " सव्वेण सव्त्र' फुलइ " પણ તે આખે આખું પરમાણુ પુદ્દલ ખીજા આખે આખા પરમાણુ પુદ્ગલના સ્પર્શ કરે છે. આ સમસ્ત કથનને ભાવાથ નીચે પ્રમાણે છે—એક પરમાણુ પુદ્ગલ જ્યારે ખીજા પરમાણુ પુદ્ગલના સ્પર્શ કરે ત્યારે કઇ પદ્ધતિ અનુસાર તે સ્પર્શ થતા હોય છે, એ વાત જાણવાને માટે ગૌતમ સ્વામીએ નવ વૈકલ્પિક પ્રશ્નો મહાવીર પ્રભુને પૂછ્યા છે. અને મહાવીર પ્રભુએ તે નવ વિ વિકલ્પાના અસ્વીકારક છે, પણ નવમા વિકલ્પના સ્ત્રી
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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