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________________ '१२० भगवती देशान् , सर्व, इति शब्दत्रयस्य योजनया तयो विकल्पा भवन्ति ९, इति सर्वसालनया नव,भगवानाह-'गोयमा णोदेसेणं देसं फुसई' हे गौतम ! परमाणुपुद्गलः परमाणुपुद्गलं स्पृशन् नो देशेन देशं स्पृशति १, 'यो देसेणं देसे फमई' नो देशेन देशान् स्पृशति २, 'णो देसेणं सम्बं फुमइ 'नो देशेन सर्व स्पृशति३ णोदेसेहि • देस फुसइ' नो देशैः देशं स्पृशति ४, ‘णो देसेहिं दे से फुसइ' नो देशैः देशान् तीन विकल्प बन जाते हैं । तया ' देशैः' शब्द के माय ( देश, देशान्, 'सर्व ) इन तीन शब्दों की योजना से दूसरे तीन विकल्प और बन जाते हैं। तथा-'सर्वेण' के साथ ( देश, देशान्, सर्व ) इन तीन शब्दों की योजनो कर देने से तीसरे तीन विकल्प बन जाते हैं । इस तरह ये नौ विकल्प हुए हैं ऐसा जानना चाहिये । और ये नौ विकल्प एक पुद्गल परमाणु का दूसरे पुद्गल परमाणु के साथ स्पर्श होने में गौतन ने उत्थापित कर प्रभु से प्रश्नों के रूप में पूछे हैं। इनका समाधान करते हुए • प्रभु गौतम से कहते हैं-( गोयमा !णो देसेणं देसं फुसइ) हे गौतम ! जब परमाणु पुद्गल दूसरे परमाणु पुद्गल का स्पर्श करता है तो वह उस ' दूसरे पुद्गल परमाणु का स्पर्श अपने एकदेश से उसके एकदेश को छ करके नहीं करता है (णो देसेणं देसे फमड) और न वह अपने एक देश से उसके अनेक देशों को छू करके ही करता है (णो देसेणं सव्व फुमा ) और न वह पुद्गल परमाणु अपने एकदेश से उसे समस्त को छू करके उसका पूरे रूप में स्पर्श करता है। (णो देसेहिं देस फुस इ) और न वह पहिला पुद्गलपरमाणु दसरे पुद्गलपरमाणु का स्पर्श करते समय ऐसा भी नहीं करता है कि अपने अनेक देशी द्वारा उस વિક બનાવ્યા છે, “ઘણું દેશ” આ પદ સાથે બીજા પરમાણુ પુલના એક દેશ, ઘણા દેશે અને સમસ્ત દેશને જીને બીજાં ત્રણ વિકલ્પ બનાવ્યા છે. એક પરમાણુના “સમસ્ત દેશો” આ શબ્દ સાથે બીજા પરમાણુના એક દેશ, ઘણા દેશે અને સમસ્ત દેશોને અનુક્રમે જવાથી ત્રીજા ત્રણ વિકલ્પ બનાવવામાં આવ્યા છે. હવે ગૌતમ સ્વામીના પ્રશ્નોને મહાવીર પ્રભુ શો જવાબ આપે છે તે मतावामां आवे छ-" गोयमा! णो देसेण देसं फुपइ" गौतम ! न्यारे એક પરમાણુ પુલ બીજા પરમાણુપુલને સ્પર્શ કરે છે, ત્યારે તે. घाताना को लागी तेना में भागना २५श ४२तु नथी, “णो देसेण देसं फुसइ" भने त पोता। मे माथी तेना ! मागान २५ ५५५ ४२ नथी, “ णो देसेण सव्व फुमइ " अनपेताना शिथी तना समस्त शान पशु २५श ४२तु नथी, "णो देसेहि देसं फुसइ" ते पाताना घर
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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