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________________ ४७६ भगवतीसूत्र ___टोका-परमाणुपुद्गलाधिकारात् तद्विशेपवक्तव्यतामाह-'परमाणुपोग्गलेणं' इत्यादि । 'परमाणुपोग्गलेणं भंते । किं सअड्ढे, समज्झे, सपएसे, उदाहु अणडढे, अमज्झे, अपएसे ?' गौतमः पृच्छति-हे भदन्त ! परमाणु पुद्गलः खलु किम् साधः,-अर्धन सहितः, समध्यः-मध्येन सहितः, सप्रदेशः-- प्रदेशेन-एकभागेन सहितः, वर्तते? उताहो अथवा, अनर्थ:-अर्धरहितः, अमध्य:मध्यरहितः, अप्रदेशः प्रदेशरहितो वर्तते ? भगवान् पाह-गोयमा! अणड्ढे, अमझे, वि) जिस तरह से यह कथन संख्यातप्रदेशी स्कन्ध के विषय में कहा गया है उसी तरह का कथन असंख्यातप्रदेशी स्कन्ध के विषय में और अनन्तप्रदेशी स्कन्ध के विषय में भी जानना चाहिये। ___टीकार्थ-यहां पर परमाणु पुद्गल का अधिकार चल रहा है अतः सूत्रकार इसी विपय में विशेष वक्तव्यता को प्रकट करने के लिये इस सूत्र को कह रहे हैं-इसमें गौतम प्रभु से पूछते हैं कि -(परमाणु पोग्गले णं भंते) हे भदन्त । जो परमाणु पुद्गल है वह (किं स अड्डे) अपने अर्धभाग सहित होता है कि नहीं होता है ? (समझे) मध्यभागसहित होता है कि नहीं होता है ? (सपएसे ) प्रदेश सहित होता है कि नहीं होता है ? यही बात (उदाहु अणड़े अमज्झे अपएसे) निषेधपरक प्रश्न की इस सूत्रपाठ द्वारा व्यक्त की गई है। यहां प्रदेश का तात्पर्य परमाणु के एकभाग से है। इसके उत्तर में प्रभु गौतम से कहते हैंपएसिओ वि) संन्यात अशी सन्धना विषयमा थन ४२पामा माव्यु છે, એવું જ કથન અસંખ્યાત પ્રદેશી સ્કન્ધના વિષયમાં તથા અનંત પ્રદેશી સ્કન્ધના વિષયમાં સમજી લેવું. ટીકાર્થ–પરમાણુ પુલનું પ્રકરણ ચાલી રહ્યું છે. તેથી તેનું વિશેષ નિરૂપણ કરવાને માટે સૂત્રકારે નીચેના પ્રશ્નોત્તરો આપ્યા છે – गौतम स्वामी महावीर प्रसुन सेवा प्रश्न पूछे छ है 'परमाणुपोग्गले णं भंते ! किं सअढे, समझे, सपएसे " महन्त! २ ५२भाशु पुस હોય છે, તે શું તેના અર્ધભાગ સહિત હોય છે. કે અર્ધભાગથી રહિત હોય છે? મધ્યભાગ સહિત હોય છે કે મધ્યભાગથી રહિત હોય છે? પ્રદેશ સહિત डाय छ, प्रदेश २हित डाय छ १ मे पात “ उदाहु अणड्ढे, समझे, अपएसे" अथवा मा नाराय: (निषेधा) सूत्र५४ २व्यत ४२वामा આવેલ છે. અહીં પ્રદેશ એટલે પરમાણુને એક ભાગ એવો અર્થ ગ્રહણ કરે. મહાવીર પ્રભુ ગૌતમ સ્વામીના પ્રશ્નને આ પ્રમાણે જવાબ આપે છે- “
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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