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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० ५ उ०७ सू०३ परमाणुपुद्गलादिविभागनिरूपणम् ४७५ द्विपदेशिकस्तथा ये समास्ते भणितव्याः, ये विषमास्ते यथा त्रिप्रदेशिकस्तथा भणितव्याः । संख्येयमदेशिकः खलु भदन्त ! स्कन्धः किं साधः, पृच्छा ? गौतमः ! स्यात साधेः, अमध्यः, सपदेशः, स्यात् अनः, समध्यः, सप्रदेशः, यथा संख्येयप्रदेशिकस्तथा असंख्येयप्रदेशिकोऽपि, अनन्तप्रदेशिकोऽपि ॥ सु० ३॥ सप्रदेश कहा गया है। (जहा दुप्पएसिओ, तहाजे समा ते भाणियव्वा ) जैसी व्यवस्था द्विप्रदेशी स्कंध के विषय में प्रकट की गई हैवैसी,ही व्यवस्था सम प्रदेश वाले स्कन्ध हैं उनके विषय में जाननी . चाहिये । (जे विसमा ते जहा तिप्पएसिओ तहा भाणियन्धा) तथा जो विषम प्रदेशों वाले पुदल रकन्ध हैं उनमें अनर्धादिका कथन तीन प्रदेशों वाले पुद्गल स्कन्ध की तरह से जानना चाहिये । (संखेज्जपए सिए णं भंते ! किं खंधे, स अड्डे, पुच्छा ) हे भदन्त जो पुगल स्कन्ध : संख्यात प्रदेशों वाला है, उसके विषय में भी मेरी इच्छा सार्थ आदि विभागों को जानने की हो रही है ? अर्थात् जो संख्यात प्रदेशों वाला पुद्गल स्कन्ध है वह कैसा होता है, क्या अर्धभाग सहित होता है ? मध्यभागसहित होता है ? प्रदेशसहित होती है ? ( गोयमा!) सिय; सअड्डे, अमज्झे, सपएसे, सिय अणड्डे, समज्झे सपएसे ) हे गौतम ! .. जो संख्याप्रदेशी स्कन्ध होता है, वह कदाचित् सार्ध होता है, मध्य : रहित होता है, और प्रदेश सहित होता है । तथा-कदाचित् अर्घभाग, रहित होता है, मध्यभाग सहित होता है और प्रदेश सहित होता है। (जहा संखेजपएसिओ तहा असंखेजपएसिओ वि अणंतपएसिओ ४ छे. (जहा दुप्पएसिओ, तहा जे समा ते भाणियव्वा) विदेशी सपना વિષે જે વાત કહેવામાં આવેલી છે, એજ વાત સમપ્રદેશોવાળા કોના विषयमा ५ समावी. (जे विसमा ते जहा तिप्पएसिओ तहा भाणियव्वा). . પણ જે વિષમ પ્રદેશોવાળા સ્ક છે તેમના વિષેનું સમસ્ત કથન ત્રિપ્રદેશી મુદ્દલ २४न्धाना वषयमा पडा ह्या भुशमनु ४थन समापु. ( संखेन्जपएसिए ण भंते ! कि खंधे, सअड्ढे, पुच्छ) 3 महन्त ! सध्या प्रशोवाणे पुरस કે હોય છે? શું તે અર્ધભાગ રહિત હોય છે? મધ્યભાગ સહિત હોય છે? भने प्रदेशोथी युति हाय छ १ (गोयमा! सिय सअड्ढे, समझे, सपएसे, . सिय अणदे, समझे, सपएसे) गौतम ! सभ्यात प्रशोण पुरस ક્યારેક અર્ધ સહિત હોય છે, મધ્યભાગથી રહિત હોય છે અને પ્રદેશ સહિત હોય છે. પણ તે ક્યારેક અધભાગથી રહિત, મધ્યભાગ સહિત અને પ્રદેશ सहित डाय छे. (जहा संखेज्जपएसिओ तहा असखेज्जपएसिओ वि अणंत
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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