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________________ ક૬૮ ___ भगवतीस्त्र विशेयः । परमाणुपुद्गलत आरभ्य असंख्येयपदेशिकपर्यन्तः स्कन्धः असिधारया, क्षुरधारया वा छेत्तुं भेत्तुं वा न शक्यते इति भावः । यावत्करणात् द्विप्रदेशिकत्रिमदेशिकादारभ्य संख्ययप्रदेशिकपर्यन्तः स्कन्धः संग्राह्यः । गौतमः पुनः पृच्छति'अणंतपएसिएणं भंते ! खंधे असिधारं वा खुरधारं वा ओगाहेजा ? ' हे भदन्त ! अनन्त प्रदेशिकः खलु स्कन्धः असिधारां वा, क्षुरधारा वा अवगाहेत ? भगवानाह-"हंता, ओगाहेज्जा' हे गौतम ! हन्त, सत्यम् अनन्तप्रदेशिकः स्कन्धः असिधारां वा क्षुरधारं वा अवगाहेत, गौतमः पृच्छति-'सेण तत्थ छिज्जेज्ज वा, वह पुद्गल परमाणु ही नहीं कहला सकता। ( एवं जाव असंखेज्जपएसिओ) इसी तरहसे यावत् असंख्यात प्रदेशी स्कन्ध में भी जानना चाहिये । अर्थात् परमाणु पुद्गल से लेकर असंख्यात प्रदेशों वाला स्कन्ध शस्त्र द्वारा छेदा भेदा नहीं जा सकता है। यहां यावत्पद से (दो प्रदेशों वाले स्कन्ध तीन प्रदेशों वाले स्कन्ध से लेकर संख्यात प्रदेशों वाले स्कन्ध गृहीत हुए हैं । अव गौतम प्रभु से पुनः पूछते हैं-(अणंतपएसिएणं भते ! खंधे असिधारं वा खुरधारं वा ओगाहेज्ज ? ) हे भदन्त !जो अनन्तप्रदेशों वाला स्कन्ध होता है वह क्या तलवार की धार के ऊपर या उस्तराकी धारके ऊपर स्थित हो सकता है ? उत्तरमें प्रभु कहते हैं कि (हता ओगाहेजा) हाँ, गौतम । वह वहां पर स्थित हो सकता है। जब अनंतप्रदेशी पुद्गल स्कन्ध तलवार की धार अथवा क्षुरा की धार पर स्थित हो सकता है तो क्या (से गं अंते । तत्थ छिज्जेज्ज वा भिज्जेपरभाने युद्ध ५२भा ही आय २१ नहीं. “ एवं जाव असखेजपएसिओ" અસંખ્યાત પ્રદેશી સ્કન્ધ પર્યન્તના વિષયમાં પણ એ પ્રમાણે જ સમજવું. એટલે કે પરમાણુ પુલથી લઈને અસંખ્યાત પર્યન્તના પ્રદેશોવાળા સ્કન્ધનું * શસ્ત્રો દ્વારા છેદન-ભેદન થઈ શકતું નથી. અહીં પર્યન્ત (યાતુ) પદથી બે પ્રદેશવાળા સ્કલ્પથી લઈને સંખ્યાત પ્રદેશોવાળા સ્કન્ધ સુધીના જેટલા પ્રદેશવાળા સ્કન્ધ છે તેમને ગ્રહણ કરવાના છે. प्रश्न-" अणंतपएसिएणं भते ! खंधे असिधार वा खुरधार वो ओगाहेज्ज ?" હે ભદન્ત ! અનંત પ્રદેશોવાળે સ્કન્ધ શું તલવારની ધાર ઉપર અથવા અઆની ધાર ઉપર રહી શકે છે? उत्तर-"हंता ओगाहेज्जा " &, गौतम ! ते त्यां रही श छ. અનંત પ્રદેશોવાળો પુલ કંધ જે તલવારની ધાર ઉપર અથવા અઆની ધાર ९५२ २४ी श छ, तो " से ण भंते ! तत्य छज्जेिज्ज वा भिज्जेज्जवा ?"
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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