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________________ "न्द्रिका टीका २०५ ४०७ सू०२ परमाणुपुद्गलादिस्वरूपनिरूपणम् ४६७ 9 sol 'वा, ? ' हे मदन्त ! स खलु परमाणुपुद्गलः तत्र असिधारायां, क्षुरधारायां वा 'स्थितः सन् छिद्येत वा द्विधाभावं गच्छेत् भिचेत वा ? विदारणभावं प्राप्नुयात् ? भगवानाह - 'गोमा ! णो इण्डे समट्ठे ' हे गौतम ! नायमर्थः समर्थः, नैतत्संभवति, यतः ' णो खलु तत्थ सत्थं कमइ' नो खलु तत्र परमाणुपुद्गले शस्त्रम् क्रामति, परमाणुतया तत्र शस्त्रक्रमणं नैव संभवति अन्यथा परमाणु लमेव न स्यात्, ' एवं जाव-असंखेज्जपएसिओ' एवं तथैव यावत् - असंख्येयप्रदेशिकः स्कन्धो 15 प्रकार की आशंका भी उद्भूत हुई कि जब पुद्गल का परमाणु तलवार आदि की धार पर अवगाहित हो सकता है तो उसके द्वारा छेदन भेदन भी होता होगा इसी बात को वे प्रश्न के रूप में प्रभु से पूछते हैं कि ( से णं भंते तत्थ छिज्जेज्ना वा भिज्जेज्जा वा ) हे भदन्त ! जब वह - पुद्गल परमाणु वहां पर ठहर सकता है तो ऐसी स्थिति में अत्यन्त - शित ( तिखी) तलवार की धार से वह छिद भिद सकता होगा । दो टुकड़े के रूप में किसी वस्तु का हो जाना इसका नाम छिदना है और 'केवल चिर जाना इसका नाम भिद जाना है । इसके समाधान, निमित्त प्रभु कहते हैं (णो इण समट्ठे ) हे गौतम ! यह बात नहीं है कि तल"वार आदि की धार से परमाणु का छेदन भेदन हो जावे, क्यों कि (णो शस्त्र का प्रभाव उस पुद्गल परमाणु पर नहीं f खलु तत्थ सत्थं कसइ) 12 पड़ सकता है। तात्पर्य कहने का यह है कि शस्त्र में ऐसी शक्ति नहीं है जो वह पुद्गल परमाणु के भीतर प्रविष्ट होकर उसके दो टुकडे कर 'सके या उसे चीर सके । यदि शस्त्र इस प्रकार से उसे कर देता है तो ، ، થાય છે કે તલવાર અથવા અન્નાની ધાર ઉપર રહેલા ભેદન થતું હશે કે નહીં? તેના સમાધાન માટે તેઓ પુદ્ગલ, પરમાણુનું છેદન મહાવીર પ્રભુને આ t अश्न पूछे छे - " से णं भंते ! तत्थ छिज्जेज्जा वा भिजेज्जा, वो ? " डे ભદન્ત ! જે તે પુદ્ગલ-પરમાણુ ત્યાં રહેતું હાય, તે તલવાર અથવા અની તીક્ષ્ણ ધારથી તેનું છેદન-ભેદન પણ થતું હશે ? ( કાઇ પણ વસ્તુના બે ટુકડા थवा तेनुं नाम छेन छे, पशु विराध भवु, तेने लेहन हे छे.) भडावीर अलु तेभने या प्रमाणे नवा माये छे-" णो इणट्ठे समट्टे " हे गौतम! मेषु सभवी शतु नथी. अर े " णो खलु तत्थ सत्थ कमइ " शखनो પ્રભાવ તે પુદ્ગલ પર પડી શકતા નથી. કહેવાનું એવી તાકાત નથી કે તે પુદ્ગલ પરમાણુની અંદર કરી શકે અથવા ચીરી શકે. જો શસ્ર તેના તાત્પ એ છે કે શસ્ત્રમાં પ્રવેશ કરીને તેના બે ટુકડા ટુકડા કરી શકે તેા તે પુદ્ગલ
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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