SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 420
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमैयचन्द्रिका टी० श० ५ उ० ६ सू०२ धनुर्विषये निरूपणम् ४०३ गृह्णाति, 'उसु परामुसित्ता ठाणं ठाइ' इषु परामृश्य वाणं गृहीत्वा, स्थाने तिष्ठति, धनुः सकाशाद् वाणप्रक्षेपकालिकमासनविशेष करोति, 'ठाणं ठिच्चा आयय कनाययं उसं करेइ स्थाने स्थित्वा आसनविशेष ग्रहणे सति वाणं प्रक्षेप्तुम् आयतकर्णायतं वाण करोति, आयतं-प्रक्षेपाय प्रसारितं कर्णायतं-कर्णपर्यन्त माकृष्ट करोतीत्याशयः, ततः 'उडूं वेहासं उसु उविहइ तत आकृष्य उचं विहायसि आकाशे इषु बाणम् उद्विध्यति ऊर्ध्व प्रक्षिपति 'तएणं से उसु उड्ढं वेहासं उविहिए समाणे 'ततः खलु तस्मिन् इषौ वाणे उध्वं विहायसि उद्विद्ध-उत्क्षिप्ते सति, 'जाई तत्थपाणाई, भूयाई, जीवाइं सत्ताइ अभिहणइ' यान् तत्र प्राणान् प्राणिनः, भूतान् , जीवान, सत्त्वान्, अभिहन्ति, अभिमुखमागच्छतो हिनस्ति आघातं प्रापयति ‘वत्तेइ, लेसेइ, संघाएइ, संघइ, परितावेइ, किलामेइ,' तत्र वर्तयतिहै ( उसुं पराजुसित्ता) बाण को उठाकर (ठाणं ठाइ) स्थान पर जाकर बैठ जाता है अर्थात् धनुप से घाण को छोड़ने के लिये आसन विशेष से वैठना होता है उस आसन विशेष से वह बैठ जाता है (ठाणं ठिच्चा) जब आसन विशेप से वह बैठ चुकता है तब बाण को चलाने के लिये (आययकन्नाययं उतुं करेइ ) वह धनुष को कानतक खींचता है और फिर उसकी ज्या (डोरी) पर बाण को चढाकर फिर वह उस (उलु) बाण को ( उड़ वेहासं उग्विहइ) ऊचे की ओर आकाश में प्रक्षित कर देता है । (तएणं से उखें उड़ वेहासं उग्विहिए समाणे ) इस तरह आकाश में प्रक्षित किया गया वह बाण (जाइ तत्थ पाणाई भूधाई जीवाई सत्ताई अभिहणइ ) अपनी ओर आते हुए प्राणियों को भूतों को जीवों को सत्त्वों को मार देता है (वत्तेइ ) शरीर के संकोच आदि करने देने से वह उन्हें संकुचित कर देता है (लेसेह) ५ ग्रएर ४२ छ, ( उस परामुसित्ता) ने. ग्रह शन (ठाण ठाइ) તે સ્થાન પર જઈને બેસી જાય છે એટલે કે ધનુષમાંથી બાણ છોડવા માટે २ विशिष्ट प्रारनामासने यस न मे मासने मेरी छ, (ठाणं डिच्चा) मासने मेसीन (आययकन्नायय उसुकरेइ) माणुने छ।3। भाट धनुषने आन सुधी भय छ भने तनी हारी ५२ मा यावान (उसु उर्दू वेहास उबिहइ) तेन शमi 2 छ (तएण से उसु उढू वेहासं उविहिए समाणे) मा शत शमां ये छ।उवामा मावते मा] "जाई तत्थ पाणाई, भूयाइ जीवाइ, सत्ताइ अभिहणइ" तेनी त२५ मातi (तना भागमा भारतi) प्राणाने, वान, भूतान भने सत्वाने भारी नामे छ, “वत्ते" ते तेभन शरीरने सथित शनामेछ, " लेसेइ" Tigei २२सा वान
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy