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________________ ४०२ भगवतीसूत्रे पञ्चभिः क्रियाभिः स्पृष्टाः । एवं धनुः पृष्ठं पञ्चभिः क्रियाभिः, जीवाः पञ्चभिः, स्नायुः पञ्चभिः, इषुः पञ्चभिः, शरः, पत्रणम् , फलम् , स्नायुः पञ्चभिः ॥ १० ३॥ टीका-क्रियाधिकारात् धनुर्धारिणो जीवहिंसाकरणे कर्मबन्धविशेषवक्तव्यतामाह-'पुरिसेणं भंते !' इत्यादि । 'पुरिसेणं भंते ! धणु परामुसइ' गौतमः पृच्छति-हे भदन्न ! पुरुपः खलु जीवान् हन्तुं धनुः परामशति गृह्णाति, 'धणुं परामुसित्ता उसु परामुसइ, ' धनुः परामृश्य धनुरादाय, इपुं वाणं परामृशति सरीरेहिं धणु निव्वत्तिए ते वि य णं जीचा कायाए जाव पंचहिं किरियाहिं पुढे ) तथा जिन जीवों के शरीरों से, धनुप बना है वे जीव भी कायिकी आदि पांचों क्रियाओं से स्पृष्ट हैं । ( एवं धनुषष्टे पंचहि किरियाहिं जीवा पंचहि हारू पंचहिं उसुं पंचहि सरे पत्तणे फले पहारू पंचहि) इसी तरह से धनुस्पृष्ट पांवों क्रियाओं से, धनुष की डोरी प्रत्यंचो पांचों क्रियाओं से स्नायु पांचों क्रियाओं से, याण पांचों क्रियाओं से शर पत्र (फले ) फल (हारू ) एवं स्नायु ये सब पांचों क्रियाओं से स्पृष्ट हैं । ____टीकार्थ-यहां क्रिया का प्रकरण चल रहा है अतः धनुर्धारी को जीव की हिंसा करने में कर्मयंध विशेष होता है-इस बात को सन्त्रकार ने इस सूत्रद्वारा प्रकट किया है-इस में गौतम स्वामी प्रभु से इस प्रकार से पूछ रहे हैं कि (पुरिसे णं भंते । घणु परामुसइ) हे भदन्त ! धनुर्धारी पुरुष जीवों के मारने के लिये धतुप को उठाता है (धणु परामु. सित्ता) धनुष को उठाकर फिर वह ( उतुं परामुसह ) पाण को उठाता (जेसि पि य ण जीवाण' सरीरेहिंवणुनिव्वत्तिए ते वि यण जीवा कइयाए, जाव पचहि किरियाहिं पक्ष) तथा waiti शाथी धनुष्य मन्यु डाय छ, ! ५५ यिश्री मा पांच छिया-माथी २Yष्ट डाय छे. ( एवं धणुपुढे पंचहि किरियाहि, जीवा पंचहि, हारू पचहि उसु पंचहि सरे पत्तणे फले हारू पंचहि) मा शत धनुस्Y४ पाय यासाथी धनुष्यनी हरी-प्रत्यया પચે ક્રિયાઓથી, સ્નાયુ પાંચ ક્રિયાઓથી, બાણ પાંચ ક્રિયાઓથી, શર, પત્ર, ફલ અને સ્નાયુ, એ બધાં પાંચે કિયાએથી સ્પષ્ટ હોય છે. ટીકર્થ–ક્રિયાનું પ્રકરણ ચાલી રહ્યું છે. ધનુર્ધર હિંસક જીવહિંસા કરવાને લીધે કમબંધ વિશેષ બધે છે. એ જ વાતનું સૂત્રકારે આ સૂત્ર દ્વારા પ્રતિपाहन थुछे. गौतम स्वामी महावीर प्रभुने मेवो प्रश्न पूछे छे है-(पुरिसे णं भते ! धणु परामुसइ) महन्त ! ४ ४३५ याने मारवा माटे धनुष धारण ४रे छे, (ध' परामुसित्ता) धनुष धारण मरीन ( उसु परामुसइ) ते माणुने
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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