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________________ प्रमैयचन्द्रिका टी० २०५७०६ सू०२ गृहपतिभाण्डनिकायस्वरूपनिरूपणम् ३८१ टीका-पूर्व कर्मबन्धक्रियाया निरूपणं कृतम् अथ क्रियान्तराणि निरूपयितुमाह'गाहावइस्सणं भंते ' इत्यादि । 'गाहावइस्सणं भंते ! भंडं विकिणमाणस्स केइ भंड अबहरेज्जा' गौतमः पृच्छति-हे भदन्त ! भाण्ड मृन्मयपात्रं विक्रीणानस्य विक्रयं कुर्वतः गाथापतेः भाण्ड कोऽपि कश्चित् अपहरेत् चोरयेत् ' तस्सणं भंते ! तं भंड गवेसमाणस्स किं आरंभिया किरियाकज्जइ' ? हे भदन्त ! तस्य खलु गाथापतेः तद्भाण्ड गवेषयतः अन्वेषयतः किम् आरम्भिकी क्रिया क्रियते भवति? अथवा-'परिग्गहिया, मायावत्तिया, अपच्चक्खाणिया, मिच्छादसणवत्तिया ?' के लिये होता है ? (हंता, गोयमा ! अगणिकाएणं अहुणुजलिए समाणे तं चेव) हां गौतम! अधुना प्रज्ज्वलित किया गया अग्निकाय जैसा तुम पूछ रहे हो इसी प्रकार से महाकर्म बंध के लिये यावत् अल्पवेदना के लिये होता है। ____टीकार्थ-सूत्रकार ने पहिले कर्मबंध की कारणभूत क्रियाओं का निरूपण किया है-अब इसी संबंध को लेकर वे क्रियान्तरों का इस सूत्र द्वारा निरूपण कर रहे हैं-इस में गौतम स्वामी प्रभु से यह पूछ रहे हैं कि 'गाहावइस्स णं भंते !, भंडं चिकिणमाणस्स केइ भंडं अवहरेज ' हे भदन्त ! गाथापति-किसी वर्तनों को मिट्टी के पात्रों को बेंचने वाले व्यक्ति के भाण्डों को कोई दूसरा मनुष्य चुरा लेता है, तो 'मंते' हे भदन्त ! (तं भंडं गवेलमाणस्स तस्स ) उन अपने चुरा. ये हुए भाण्डों की गवेषणा करनेवाले उस गोथापतिको (किं आरंभिया (हता, गोयमा ! अगणिकाएणं अहुणुज्जलिए समाणे त चेव ) , गौतम! એવું જ બને છે–અત્યારે જ પ્રજ્વલિત કરેલે–પ્રગટાવેલે–અગ્નિકાય મહાકમઅધથી લઈને મહાદના પર્યન્તનું નિમિત્ત બને છે અને ઓલવાતે અગ્નિકાય અલ્પ કર્મબંધથી લઈને અલ્પ વેદના પતિનું નિમિત્ત બને છે? ટીકાર્થ–સૂત્રકારે પહેલાં કર્મબંધની કારણભૂત ક્રિયાઓનું નિરૂપણ કર્યું છે. હવે તેની સાથે જેમને સંબંધ છે એવી ક્રિયાઓના જુદા જુદા ભેદનું નિરૂપણું આ સૂત્ર દ્વારા કરે છે– गौतम स्वामी महावीर प्रभुने शेको प्रश्न पूछे छे 3-" गाहावइस्सणं भते ! भंड विकिणमाणस्स केइ भंड अवहरेज्जा" महन्त ! मे માટીનાં વાસણે વેચનાર વ્યક્તિનાં વાસણને બીજે કઈ માણસ ચરી જાય, तो " भते ! त भंड गदेसमाणस तस्स" पान न्याशये पासणीनी साथ ३२ ते व्यापारीन "कि आमिया किरिया कज्जइ १" शुमार मिश्रा या
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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