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________________ प्रमैरवन्द्रिका टी० श० ५ ७० ६ सू० १ कर्मविषये निरूपणम् दुःखभोगपूर्वकं दीर्घायुष्ककारणीभूतं कर्म प्रकुर्वन्ति बध्नन्ति । गौतमः पुनः पृच्छति - ' कहणमंते ! जीवा सुभदीहाउयत्ताए कम्मं पकरेंति ? ' हे भदन्त ! कथं खलु जीवाः शुभदोर्घायुष्कतायै कर्म प्रकुर्वन्ति ? बध्नन्ति ? भगवानाह - 'गोयमा ! नो पाणे अश्वाइत्ता, नो मुसं वइत्ता' हे गौतम! नो प्राणान् अतिपात्य, नो जीवहिंसां विधाय नो मृषा - मिथ्यावादम् उक्त्वा, ' तहारूवं समणं वा, माहणं वा, वंदित्ता, नमसित्ता, जात्र - पज्जुवासित्ता ' तथारूपं तथाविधं श्रमणं वा, ब्राह्मणं वा वन्दित्वा नमस्थित्वा यावत् पर्युपास्य ' अन्नयरेणं मणुन्नेणं, पीड़ अब गौतम प्रभु से पुनः पूछते हैं किं कहणं भंते । जीवा सुभ दीहाउयत्ताए कम्मं पकरेंति ' हे भदन्त ! जीव शुभदीर्घायुष्य का बंध किंन २ कारणों के आचरण से करते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु गौतम से कहते हैं कि (गोमा ) हे गौतम ! ( णो पाणे अइवाइत्ता, नो मुसं वहता) जीव जो शुभ दीर्घायुष्क का जिसमें जीवन देशसंयम अथवा सकल संयम की अधिक समयतक आराधना करते हुए व्यतीत होतो है, ऐसे दीर्घ जीवन का - बंध करता है वह इन कारणोंके सेवन से करता है- इनमें पहिला कारण है, किसी भी जीव की हिंसा नहीं करना और दूसरा कारण है मृषावाद का त्याग करना तथा ऐसा सत्य भी नहीं बोलना दूसरे प्राणियों को दुःखकर- विपत्तिकर - अप्रियकठोर हो, तीसरा कारण है - तथारूप धारी संयमी मुनि को अथवा माहण को उनकी उचित भक्ति के अनुसार अशन पान आदि निर्दोष कल्पनीय सामग्री का दान देना, यही बात - (चंदिता, नमसित्ता जाव पज्जुवासित्ता अन्न डवे गौतम स्वामी महावीर अलुने वधु मे प्रश्न पूछे छे - ( कहणं मंते ! जीवा सुभदीहाउयत्ताए कम्मं पकरेति १) हे लहन्त ! लवा }या ञ्ज्या કારાને લીધે શુભ દીઘયુ કરાવનાર કર્મના અધ કરે છે ? उत्तर- ( गोयमा ! ) गौतम ! (नो पाणे अइवाइत्ता, नो मुसंवइत्ता, ) જીવા શુભ દીર્ઘાયુને મધ નીચેનાં કારણેાને લીધે કરે છે. (શુભ દીર્ઘાયુના બંધ બાંધનાર જીવનું જીવન અંશતઃ સંયમ અથવા સકળ સયમની અધિક સમય સુધી આરાધના કરવામાં વ્યતીત થાય છે ) (૧) જીવહિંસા નહીં કરવાથી, (૨) મૃષાવાદના ત્યાગ કરવાથી–( એવું સત્ય પણ ન ખેલવું કે જે જીવાને દુઃખકર, અપ્રિય અને કઠાર લાગે) અને નિરતિચારશુદ્ધ સયમની આરાધના કરનાર મુનિને અથવા શ્રમણ માહણને ભક્તિભાવપૂર્વક પ્રાસુક–નિર્દોષ, કલ્પનીય આહાર, પાણી આદિ વસ્તુનુ દાન દેવાથી જીવ શુભદીર્ઘાયુના ખંધ छेपात (वदित्ता, नम वित्ता, जाव पज्जुवासित्ता, अन्नयरेणं मणुणेणं
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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