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________________ ३६७ प्रमैयचन्द्रिका टी० श० ५ ७० ६ सू०१ कर्मविषये निरूपणम् वन्ति बध्नति । गौतमः पुनः पृच्छति-कहणं भंते ! जीवा दीहाउयत्ताए, कम्म पकरेंति ? ' हे भदन्त ! कथं केन कारणेन खलु जीवाः दीर्घायुष्कतायै कर्म प्रा. चन्ति, ? बध्नन्ति, भगवानाह-' गोयमा ! तिहिं ठाणेहिं " हे गौतम ! त्रिभिः स्थानः जीवा दीर्घायुष्कतायै कर्म बध्नन्ति, तान्येव स्थानानि प्रदर्शयति-तंजहा -णो पाणे अइवाइत्ता णो मुसं वइत्ता' तद्यथा-नो प्राणान् अतिपात्य-जीवहिंसा मकृत्वा इत्यर्थः, नो मृषा उक्त्वा नापि असत्यभाषणं कृत्वा ' तहारूवं समणं वा, माहणं वा, फासुएसणिज्जेणं, असण-पाण-खाइम-साइमेणं पडिलाभेत्ता' तथारूपं तथाविधं श्रमणं वा, ब्राह्मणं वा, प्रासुकैषणीयेन अशन-पान-खादिमस्वादिमेन प्रतिलाभ्य, ' एवं खलु जीवा दीहाउयत्ताए कम्मं पकरेंति' एवम् भी अर्थ हो सकता है कि इस प्रकार के कामों को करने वाला जीव जिस गति का बंध कर लेता है वहां की जितनी भी उत्कृष्ट आयु होती है उतनी आयु का यह बंध कर्ता नहीं होता है-अल्पायु का ही यह बंधक बनता है। अब गौतम स्वामी प्रभु से पूछते हैं कि (कह णं भंते ! जीवा दीहाउयत्तोए कम्मं पकरेंति) हे भदन्त ! जीव किन २ कारणों से दीर्घआयु का बंध करते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु गौतम से कहते हैं कि (गोयमा) हे गौतम ! (तिहिं ठाणेहिं ) जीव तीन स्थानों के आचरण करने रूप कारणों से दीर्घायुष्य का बंध करते हैं । (तं जहा वे तीनस्थान इस प्रकार से हैं-(णो पाणे अइचाहत्ता, णो मुसं वहत्ता, तहारूवं समणं वा माहणं वा फासुएसणिज्जेणं असनपानखाइमसाइमेणं पडिलामेत्ता-एवं खलु जीवा दीहाउयत्ताए कम्मं पकरेंति ) जीवों की આ કથનને એ પણ અર્થ થાય છે કે આવા પ્રકારના કામે કરનારા જ જે ગતિને બંધ કરે છે ત્યાંની જેટલી ઉત્કૃષ્ટ આયુ હોય છે તેટલા આયુને બંધ કરનાર થતો નથી, તે અલ્પાયુને જ બંધ કરે છે. . वे गौतम स्वामी महावीर प्रभुने भाले प्रश्न पूछे छ (कहणं भते ! जीवा दीहाउयत्ताए कम्म पकरेंति ?) महन्त । या या रयान सीधे । દીધોયુષ્યને બંધ કરે છે ? । उत्तर भापता महावार प्रभु ४ छ-(गोयमा ! तिहि ठाणेहिं) ગોતમ ! ત્રણ કારણનું આચરણ કરીને, છ દીર્ધાયુષ્યને બંધ કરે છે. (तंजहा) ते ॥२॥ मा प्रमाणे छ-(नो पाणे अइवाइत्ता, नो मुसे वइत्ता, तहारूव समणं वा, माहणं वा, फासुएसणिज्जेणं असण, पाण, खाइम साइमेणं पडिलाभेत्ता, एवं खलु जिवा दीहाउयत्ताए कम्म पकरेंति ) ७वानी डिसा नही
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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