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________________ ३५२ भगवतीय दीवेणं भने ! दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए समाए कइ कुलगरा होत्या?' गौतमः पृच्छति-हे भदन्त ! जम्बूद्वीपे खलु द्वीपे भारते व अस्याम् वर्तमानायाम अवसर्पिण्यां दशकोटीकोटिसागरोपमप्रमाणहासोन्मुखकालस्वरूपिण्यां कति कियन्तः कुलकराः अभवन् ? भगवानाह-'गोयमा । सत्त' हे गौतम ! सप्त कुल कगः संजाताः, ते च विमलवाहनः, चक्षुष्मान् , यशोमान् , अभिचन्द्रः, प्रसेन जित , मरुदेवः, नाभिश्चेति सप्त । तेपां स्त्रियश्च सप्त । तासाम् चन्द्रयशाः, चन्द्र सूत्रकार इन सब विषय की वक्तव्यता को प्रतिपादन करने के लिये इस सूत्र का कथन कर रहे हैं-इसमें गौतम प्रभु से पूछते हैं कि (जंधुद्दीवे णं अंते । दीवे मारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए समाए कह कुलगरा होत्था) हे भदन्त ! इस जंबूद्वीप के वर्तमान इस भरतक्षेत्र में इस चालू अवसर्पिणी काल में कितने कुलकर हुए हैं ? अवसर्पिणी काल का प्रमाण १० कोटाकोटी सागरोपम को कहा गया है। इस काल में जीवों की आयु, काय आदि का प्रमाण उत्तरोत्तर कम होता जाता है। कुलकर इस १० कोटाकोटि सागरोपम प्रमाणवाली तथा हासोन्मुख काल स्वरूपवाली अवसर्पिणी ( के तीसरे आरे) में ही हुए हैं-इसीलिये गौतम ने प्रभु से ऐसा प्रश्न किय है-इसके उत्तर में भगवान् गौतम से कहते हैं कि-(गोयमा ) हे गौतम! "सत्त" सात कुलकर हुए हैं। इन के नाम इस प्रकार से हैं-१ विमलवाहन, २ चक्षुष्मान, ३'यशोमान, ४ अभिचन्द्र, ५ प्रसेनजित्, ६ मरुदेव और ७ नाभि। इनकी सात પૂર્વમાં તે કુલકર, તીર્થકર આદિને પણ સમાવેશ થાય છે. તેથી સૂત્રકારે આ સૂત્રમાં એ સૌનું પ્રતિપાદન કર્યું છે. गौतम स्वामी महावीर प्रभुने पो पूछे छे 3-(जबुद्दीवेण भंते ! दीवे भारहेवासे इमीसे ओसन्पिणीए समाए कइ कुलगरा होत्था ?) 8 मापन જંબુદ્વીપમાં આવેલા આ ભરતક્ષેત્રમાં ચાલુ અવસર્પિણી કાળમાં કેટલા કુલકર થયા છે? અવસર્પિણીકાળનું પ્રમાણ દસ કોટાકોટિ–સાગરેપમનું કહ્યું છે. આ કાળમાં જીવોના આયુષ્ય, શરીર આદિનું પ્રમાણ ઉત્તરોત્તર ઘટતું જાય છે. આ દસ કોટાકોટી સાગરોપમ પ્રમાણુવાળા, તથા હાસંમુખ કાલ સ્વરૂપવાળા, અવસર્પિણમાં જ (અવસર્પિણના ત્રીજા આરામાં) કુલકર થઈ ગયા છે. તેથી જ ગૌતમ ગણધરે આ પ્રકારને પ્રશ્ન પૂછે છે. તેને ઉત્તર આપતા महावीर प्रभु ४ छ-"गोयमा! सत्त" उ गीतम! सात दुस४२ च्या छ. तमना नाम मा प्रभारी छ-(१) विभाइन, (२) यक्षुष्मान, (3) यशोमान, (४) अनियन्द्र, (५) प्रसेनति, (९) भरुदेव भने, नामित सात दशनी
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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