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________________ प्रमैयचन्द्रिका टीका २० ५ उ०५ सू० २ अन्यतीथिकवक्तव्यताकथनम् ३६ नेरइया जहा कडाकम्मा तहा वेयण वेयंति' हे गौतम ! ये खलु नैरयिकायथाकृतानि येन क्रमेण उपार्जितानि कर्माणि तथा तेन क्रमेणैव वेदनां वेदयन्ति 'तेणं नेरइया एवं भूयं वेयणं वेयंति' ते खलु नैरयिकाः एवं भूताम् उपयुक्त रूपाम् वेदनां वेदयन्ति काल सौकरिकादिवत् , अथ च जे णं नेरइया जहा कडा कम्मा णो तहा वेयर्ण वेयंति' ये खलु नैरयिकाः यथाकतानि कर्माणि, नो तथा वेदनां वेदयन्ति । तेणं नेरइया अणेवंभूयं वेयणं वेयति ' ते खलु नैरयिकाः अनेवभूतां तद्विपरीतामपि वेदनां वेदयन्ति श्रेणिकादिवत् । ' से तेणद्वेणं ' तत् से करते हैं-इस पर प्रभु उनसे 'गोयमा! जेण नेरइया जहा कडा कम्मा तहा वेयर्ण वेयंति ' इस पाठ द्वारा कहते हैं कि हे गौतम | नारक जीव जैसा कर्म करते हैं-अथवा जैसा उन्हों ने कर्म उपार्जित किया है उसी क्रमसे वे वेदना को भोगते हैं इस कारण वे 'तेणं नेरझ्या एवं भूयं वेयणं वेति ' काल सौकरिकादि की तरह एवंभूत वेदना को भोगते हैं ऐसा कहा जाता है और 'जेर्ण नेरक्या' जो नारक जीव 'जहा कडा कम्मा, णो. तहा वेयर्ण वेयंति, तेणं नेरइया अणेवं भूयं वेयणं वेयंति' जैसा उन्हों ने कर्म किया है श्रेणिक आदि की तरह उस के अनुसार वेदना को नहीं भोगते हैं वे नारकजीव अनेव भूत वेदना को भोगते हैं ऐसा कहा जाता है । तात्पर्य ऐसा है कि जैसा कर्म किया हैं वेसी वे उसकी वेदना का अनुभव नहीं करते हैं, किन्तु उससे विप रीत वेदना का अनुभव करते हैं अतः अनेभूत वेदना को भी वे भोगते हैं ऐसो माना जा सकता है । ' से तेणष्टेणं' इसी कारण हे गौतम ! मैंने વેદન કહે છે અથવા જેવા કર્મો ઉપાજીત કર્યા હોય તેને અનુરૂપ વેદનાનું વેદન કરે છે અથવા તેમણે જે પ્રકારને કર્મબંધ બાંધ્યે હોય તે અનુસાર વેદનાને અનુसप ४२ छे, (ते णं नेरइया एवं भूय वेयति "se सी२ि४ ४साना भात नारी भूत वनानसागवे छ, मेवुअामा मात्र छ परन्तु (जे णं नेरइया) २ ना२४ को (जहा कडा कम्मा णो तहा वेयणं वेयति) तभार ४२८ भनि भनु३५ वनानु वहन (अधुि २२तनी मा४) ४२ता नथी, (ते णं नेरइया भणेवंभूय वेयणं वेयंति ) नाटो भने भूत वहनानु वहन ४२ छे, मेम કહેવાય છે. કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે તેમણે જેવા કર્મો કર્યા હોય, એવી વેદનાને અનુભવ તેવો કરતા નથી, પણ એથી જુદા જ પ્રકારની વેદનાને પણ અનુભવ કરે છે. તેથી તેઓ અનેવંભૂત વેદનાને પણ ભેગવે છે, એવું માની शाय छे. (से तेणठेण'.) 8 गौतम ! ना२६ योना भवन मामतन
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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