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________________ भंगवतीसूत्र ३४८ ___'से तेणढणं तहेव' तत् तेनार्थेन तथैव पूर्वोक्तरीत्या प्रतिपादितम् , गौतमः पृच्छति ‘नेरइया णं भंते ! किं एवं भूयं वेयर्ण वेयंति, अणेवं भूयं वेयणं वेयंति हे भदन्त ! नैरयिकाः खलु किम् एवंभूतां वेदनां वेदयन्ति, अनेवभूतां चा, वेदनां वेदयन्ति ? भगवानाह- गोयमा ! नेरइया णं एवं भूयं पि वेयणं वेयंति अणेवंभूयं पि वेयणं वेयंति' हे गौतम ! नैरयिकाः खलु एवंभूताम् उपयुक्तस्वरूपाम् अपि वेदनां वेदयन्ति, अनवंभूताम् तद्विपरीतामपि वेदनां वेदयन्ति गौतमस्तत्र कारणं पृच्छति-' से केपटेणं तं चेव ? ' हे भदन्त ! तत् केनार्थेन केन कारणेन तदेव-उभयम् उपर्युक्तं संभवति ? भगवानाह-'गोयमा ! जेर्ण वेदना का अनुभव करते हैं और कितनेक जीव अनेवंभूत वेदना का भी । अतः अनेवंभूत वेदना का ही या एवंभूत वेदना का अनुभव होता है, ऐसा एकान्त पक्ष श्रेयस्कर नहीं है। 'से तेणटेणं तहेव' इसी लिये हे गौतम ! मैंने पूर्वोक्त रूपसे ऐसा कहा है कि जो जीव जसो कर्म करता है वह उसे वैसा ही भोगता है ऐसा अन्य तीथिक जनों का एकान्त मान्यता का प्रतिपादन मिथ्या ही है । अब गौतम भगवान् से यह पूछते हैं कि 'नेरइयाणं भंते । कि एवं भूयं वेधणं वेयंति, अणेवभूयं वेधणं वेयंति हे भदन्त ! नारक जीव एवंभूत वेदनाको भोगते है ? या अनेवभून वेदना को भोगतें हैं ? इसके उत्तर में प्रभु गौतम से कहते हैं कि-गोयमा नेरयियाणं एवंभूयं पि वेषणं वेयंनि अणे भूयं पिबेयणं वेति' हे गौतम ! नारकजीव एव भूत वेदना को भी भोगते हैं और अनेभूत वेदना को भी भोगते हैं । ऐसा क्यों होता है ? सो इस विषय में कारण को पूछने के अभिप्राय से गौतम स्वामी प्रभु से 'से केणटेण तं चेच' इस प्रकार तहेव" गौतम ! ते २0 में से उर्दु छ अन्यमतवाहीमानी " એવંભૂત વેદનાનું વેદન કરે છે (કૃત કર્મબંધ અનુસાર વેદનાનું વેદન કરે છે)” એવી અકાન્તિક માન્યતા મિથ્યા છે व गौतम स्वामी महावीर प्रभुने पूछे छे • नेरइयाणं भंते । किं एवं भूय वेयणं वेयति, अणेवंभूयं वेयणं वेयति १" महन्त ! ना२४ wal એવંભૂત વેદનાનું વેદન કરે છે કે અનેવંભૂત વેદનાનું વેદન કરે છે ? उत्तर- गोयमा ! नेरइयाण एवं भूयं पवेयण वेयंति, अणेवभूय पि वेयण वेयंति" गौतम ! ना२४ मे भूत वेदनानु ५ वेहन ४२ छ અને અનેવંદભૂત વેદનાનું પણ વેદન કરે છે. प्रश्न-(से केणटूठेणं त चेव ?) 8 महन्त ! मा५ । सो मे छ। ? - उत्तर-(गोयमा ! जे ण नेरइथा जहा कडा कम्मा तहा वेयणं वेयंति) હે ગૌતમ ! નારક જીવોએ જેવા પ્રકારના કર્મો કર્યા હોય તેને અનુરૂપ વેદનાનું
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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