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________________ भंगधतीने हेउं वा, कारणं वा, पसिणं वा वागरणं वा, पुच्छंति" हे गौतम ! यत् खलु अनुत्तरौपपातिका देवाः तत्रस्थितश्चैव सन्तः अर्थं वा, हेतु वा, कारणं वा, प्रश्नं वा, व्याकरणं वा, केवलिनं पृच्छन्ति, 'तणं इहगए केवली अट्ठ वा जाव-वागरणं वा वागरेइ ' वत् खलु इहगतः अत्रस्थित एव केवली केवलज्ञानी अर्थ वा, यावत्व्याकरणं वा व्याकरोति, उत्तरदानेन स्पष्टीकरोति । तदुपसंहरति-से तेणद्वेग०' इत्यादि । हे गौतम । तत् तेनार्थेन प्रभवः समर्थाः खलु अनुत्तरवैमानिका देवाः तत्रस्थिताः सन्त एव अवस्थितेन केवलिना साकम् आलापादिकं कर्तुम् , गौतमः पुनः पृच्छति-'जणं भंते ! इहगए चेत्र केवली अलु वा जाव-वागरेई' हे भदन्त! देवा ) जो अनुत्तर विमानवासी देव (तत्थ गया चेव समाणा) अपने निज स्थान पर रहकर ही (अटुं वा, हेउं वा, कारणं वा) अर्थ को, हेतु को, कारण को (पसिणं वा) प्रश्न कों (वागरणं वो) अथवा व्याकरण को-विशेष स्पष्टीकरण को (पुच्छंति ) केवली भगवान् से पूछते हैं (तं णं) उस (अटुं वा जाव वागरणं वा) अर्थ का यावत् व्याकरण-विशेष पूछे हुए स्पष्टीकरण का (इहगए केवली) यहां पर रहे हुए वे केवली भगवान् (वागरेइ) उत्तर देते हैं। (से तेणटेण०) इसमें यहीं कारण है-अतः हे गौतम! मैंने ऐसा कहा है कि अनुत्तरविमानवासी देव आपने स्थान पर स्थित होकर ही यहां पर स्थित केवली के साथ आलाप संलाप करने के लिये समर्थ हैं । अब गौतमस्वमी प्रभु से यह पूछते हैं कि (जं णं भंते!) हे भदन्त ! जो (इहगए घेव केवली) यहां स्थित ही केवली (अटुं वा जाव वागरेइ) अथे को (जण अणुत्तरोववाइया देवा तत्थगया चेव समाणा) मनुत्तर विमानवासी वो भने स्थाने २खीन रे ( अदुवा, हेउवा, पसिणं वा, वागरणवा) मथ, उतु, १२, प्रश्न मथवा व्याय ( विशेष २५०टी४२९५ ) (पुच्छंति) ना विषयमा प्रश्न पूछे छ, ( त ण अट्ट वा जाव वागरण वा इहगए केवली घागरेइ) ते मर्थथा व्या३२९४ पर्यन्त प्रश्नोनी मा मनुष्य सभा रडता ऐवजी लगवान उत्तर मा छ-" से तेणदण " ते णे, गौतम!' એવું કહ્યું છે કે અનુત્તર વિમાનવાસી દે તેમનાં વિમાનમાં રહીને જ આ લેકમાં રહેલા કેવળી ભગવાનની સાથે વાર્તાલાપ કરી શક્યાને સમર્થ હોય છે. वे गौतम स्वामी महावीर प्रभुने मात्र प्रत पूछे छ है-(जं गं भंते ! इह गए चेव केवली अटुं वा जाव वागरेइ) ard! मा मनुष्य भी -
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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