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________________ ३०० भगवती सूत्रे " येत्, तत् खलु प्रणीतं मनो वचश्च वैमानिका देवा जानन्ति १ पश्यन्ति किम् ? भगवान् प्राह - ' गोयमा । अत्थेगइया जाणंति, पासंति, ' हे गौतम! अस्ति संभवति - एके केचिद् वैमानिकाः तद् जानन्ति, पश्यन्ति “अत्येगइया ण जाणंति ण पासंति " अस्ति-अथ एके केचन वैमानिकाः न जानन्ति नापि पश्यन्ति । गौतमस्तत्र कारणं पृच्छति - 'से केणद्वेगं जाब-न पासंति' हे भदन्त । तत् केना, न यावत् न पश्यन्ति ? यावत्करणात् केचिदू जानन्ति केचिद् न जानन्ति, केचित् पश्यन्ति केचिद् ' इति संग्राहथम् । भगवान् तत्र कारणं प्रतिपादयति'गोयमा | वैमाणिया दुविहा पण्णत्ता ' हे गौतम ! वैमानिकाः द्विविधाः द्विप्र , " भदन्त ! जिस प्रकृष्ट मन, वचन को केवल ज्ञानी अपने उपयोग में लाते हैं उसे क्या वैमानिक देव अपने ज्ञान द्वारा जानते और देखते हैं ? इस के उत्तर में प्रभु कहते हैं 'गोयमा ! हे गौतम ! केवल ज्ञानी के प्रकृष्ट मन, वचन को सत्र वैमानिक देव नहीं जानते हैं किन्तु अत्थेगइया जाणंति पासंति' किननेक ही वैमानिक देव जानते हैं और देखते है । तथा ' अत्थेगइया पण जाणंति, ण पासंति' कितनेक वैमानिक देव ऐसे भी हैं जो केवली के प्रकृष्ट मन, वचन को नहीं जानते हैं नहीं देखते हैं । अब गौतम इस विषय में कारण जिज्ञासा के वशवर्ती होकर प्रभु से पूछते हैं ' से केणद्वेणं जाव न पासंति ' हे भदन्त ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि सब वैमानिक देव केवली के प्रकृष्ट मन एवं वचन को नहीं जानते हैं ? इस के उत्तर में प्रभु कहते हैं 'गोयमा' हे गौतम! ' वेमाणिया दुविहा पण्णत्ता' ઉપયાગ કરે છે, તેને શું વૈમાનિક દેવે તેમના જ્ઞાન દ્વારા જાણી શકે છે અને દેખી શકે છે ખરાં ? उत्तर- ( गोयमा ! ) हे गौतम! ठेवणज्ञानीना अष्ट भन भने वयनने अघां वैभानिः देवेो लघुता नथी, पशु ( अत्थेगइया जाणंति पासंति ) डेंटला वैमानि देवे। लये छे मने देणे छे, ( अत्थेगइया ण जाणंति ण पासंति ) પરન્તુ કેટલાક વૈમાનિકા કૈવલીના પ્રકૃષ્ટ મન, વચનને જાણતા નથી અને દેખતા નથી. प्रश्न -- ( सेकेणट्टे ण' जाव न पसंति ) हे लडन्त ! आप शी अर એવું કહેા છે કે સમસ્ત વૈમાનિક દેવા કેવલીના પ્રકૃષ્ટ મન અને વચનને જાણતા નથી? " गोयमा ! वेमाणिया दुविधा पण्णत्ता" हे गौतम! वैमानिओना मे 'अक्षर ह्या छे, " तेजहा " ते मे प्रभारी या प्रभा ; ·
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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