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________________ प्रमैयचन्द्रिका टी० श० ५ उ० ४ सु० ५ शिष्यद्वयस्वरूपनिरूपणम् २५६ नुमाए समाणे' ततः खलु गौतमः इन्द्रभूतिः श्रमणेन भगवना महावीरेण अभ्यनु ज्ञातः सन अनुमतो भूत्वा आदिष्टः सन् इत्यर्थः 'समणं भगवं महावीरें वंदइ नमंसह ' श्रमणं भगवन्तं महावीरं वन्दते, नमस्यति, वन्दित्वा. नमस्थित्वा जेणेव ते देवा तेणेव पहारेत्थ गमणाए ' यत्रैव यस्मिन्नेव प्रदेशे तौ देवी आस्ताम् , तव तस्मिन्नेव प्रदेशे गमनाय गन्तुं प्रधारितवन्तौ मस्थितवन्तौ, 'तएणं ते देवा भगवं गोयमं एज्जमाणं पासंति, ' ततः खलु तौ देवी भगवन्तं गौतमम् इन्द्रभूतिम् आयान्तम्-आगच्छन्तम् पश्यतः दृष्टवन्तौ, 'पासित्ता हट्ट, जाव-हियया, खिप्पामेव अब्भुढेति' दृष्ट्वा च हृष्ट यावत्-हृदयौं अतिसन्तुष्टमानसौ भूत्वा लिममेव झटित्येव अभ्युत्तिष्ठतः अभ्युत्थानं कृतवन्तौ, 'अहित्ता खिप्पामेव 'पच्चुवागच्छंति' अभ्युत्थाय क्षिप्रमेव प्रत्युपागच्छतः, तस्य समीपमागतो, महावीरेण अन्भुणुन्नाए समाणे ' इस प्रकार से जब भगवान् महावीर ने गौतम को आदेशित किया तब उन गौतम इन्द्रभूतिने 'समण भगवं महावीरं वंदइ नमसइ' श्रमण भगवान् महावीर को वंदना की और उन्हें नमस्कार किया, वन्दना नमस्कार करके फिर वे जेणेव ते देवा तेणेव पहारेथ गमणाए ' जहा पर वे दोनों देव थे, उसी प्रदेश को ओर जानेके लिये तैयार हुए 'तएणते देवा भगवं गोयमं एज्जमाणं पासंति" गौतम को अपनीओर आनेके लिये तैयार जानकर उन देवोंने 'पासित्ता' देखकर वे दोनों देव 'हह जाव हियया खिप्पामेव अन्भु डेति यावत् अतिसंतुष्ट मानस वाले होकर शीघ्र ही अपने स्थान से उठे और अन्भुहिता 'खिप्पामेव' शीघ्र ही ' पच्चुवागच्छंति' उनकेपास वाम तने आप “तएण' भगव गोयमे समणेण भगवया महावीरेण' अन्भगुन्नाए समाणे " न्यारे भगवान महावीरे गौतम स्वाभान मा प्रभारी भाज्ञा ४री, त्यारे गौतम स्वाभीमे “समण भगव महावीरं वंदइ नमसह" श्रम सगवान महावीरने १४ नमः॥२ ४ा. १४ नम२४१२ ४शन "जेणेव ते देवा तेणेव पहारेत्थ गमणाए " न्योत मन्ने हे। भिराभान ता, त्यां જવાને તૈયાર થયા. "तएण ते देवा भगव गोयम एक्जामाण पासति" ते वामे मगवान गौतमने भनी त२५ मापवानी तयारी ४२di नया. " पासिता" बन "हट जाब हियया खिप्पामेव अव्भुढे ति" तमना मन अत्यत हर्ष भने सतष थया. तमा तमना यामेथी ला थया, “अमुठ्ठित्ता" हीन " खिप्पामेर" तर “पच्चुवागच्छति " तेगा तेमनी पासे पा भाटे
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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