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________________ प्रमेयपन्द्रिका टीका श० ५ उ०४ सू०५ शिष्यवयस्वरूपनिरूपणम् १५७ संपेक्षते विचारयति, 'संपेहिता उठाए उठेइ, जाव-जेणेव समणे भगवं महावीरे जाव-पज्जुपासइ ' संपेक्ष्य विचार्य, उन्थया उत्थानेन उत्तिष्ठति, उत्थाय च यावतू यौव यस्मिन्नेव प्रदेशे श्रमणो भगवान महावीर आसीत् यावत्-तस्मिन्नेव प्रदेशे उपागच्छति, उपागम्य च भगवन्तं पर्युपास्ते-सेवते, पर्युपास्य भगवन्तमुक्तप्रश्न पपच्छ; यावत्करणात् अचपलया अत्वरया असंभ्रांत्या गत्या इत्यादि संग्राह्यम् । ततो भगवानाह – 'गोलमाइ ! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं एवं वयासी' हे गौतम ! इति सम्बोध्य, श्रमणो भगवान महावीरो भगवन्तं गौतमम् एवम्-वक्ष्यमाणप्रकारेण अवादीत-से गृणं तव गोयमा । झाणंतरियाए वह माणस्स इमेयारूवे अज्झथिए ' हे गौतम ! तत् नूनं निश्चितं ध्यानान्तरिकार्या अपनी उत्थान शक्ति से उड़े, उठकर जाव जेणेव समणे भगव महावीरे जाव पज्जुवासइ' यावत् जहां पर श्रमण भगवान् महावीर विराजमान थे-वहां पर गये वहां जाकर उन्होंने यावत् प्रभुकी पर्युपासनाकी और उनसे अपना पूर्वोक्तप्रश्न पूछा-'यहा यावत् पद से' गति के अचपलया, अत्वरया, असंभ्रमया गत्या ' इन विशेषणोंको ग्रहण किया गया है । इसके बाद भगवान् ने किस प्रकार से उन्हें संबोधित किया और क्या कहा सो ही गोयमाइ ! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयम एवं वयासी) इस सूत्र पाठ द्वारा प्रकट किया गया है-णूणं तव गोयमा माणं तरियाए बट्टमाणस्स इमेयाख्वे अज्झथिए जाव जेणेव मम अतिए तेणेच हव मागए' उन्हें जो विचार उत्पन्न हुआ था-वही प्रभुने विया२ शन “ उट्राए उदेह" तसा तेमनी जत्थान शतिथी १४या. " जाव जेणेव समणे भगवं महावीरे जाव प्रज्जुवासइ" हीन न्या श्रमाय मापान મહાવીર વિરાજમાન હતા ત્યાં ગયા. ત્યાં જઈને તેમણે વંદણા નમસ્કાર કર્યા मने सापानी पर्युपासना ४२१. मही 'जाव' (पर्यन्त) ५४थी शतिना આટલાં વિશેષણ ગ્રહણ કરવામાં આવ્યાં છે. "अचवलया, अस्वरया असंभमया गत्या " ત્યારે ભગવાન ગૌતમ સ્વામીના મને ગત વિચારોને સમજી ગયા. " गोयमाइ! समणे भगव महावीरे भगवगोयम एवं क्यासी " " गौतम!" એવું મધુરું સંબોધન કરીને શ્રમણ ભગવાન મહાવીરે ગૌતમ સ્વામીને આ प्रभारी धु-' से पूर्ण तत्र गोयमा ! झाणतरियाए वट्टमाणस इमेयारहवे अन्झस्थिए जाव जेणेव ममं अंतिए तेणेव हव्यमागए" ध्यान सभाक्ष यता गौतभावामीनाध्यमां भ ३३
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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