SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 263
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवतीसूत्र महावीरो भगवन्तं गौतमम् एवम् अवादीत्-तद् नूनं गौतम ! ध्यानान्तरिकायां वर्तमानस्य अयम् एतद्रूपः आध्यात्मिका, यावत्-यौव मम अन्तिकं तव हव्यम् आगतस्तद् नून गौतम ! अर्थः समर्थः ? हन्त, अस्ति नद् गच्छ, गौतम ! एती एव देवौ इमानि एतद्रूपाणि व्याकरणानि व्याकरिष्यतः । ततो भगवान् गौतमः श्रमणेन भगवता महावीरेण अभ्यनुज्ञातः सन् श्रमणं भगवन्तं महावीर वन्दते, नमस्यति वन्दित्वा नमस्यिस्या यव तौ देवौ, तौव प्रधारितवान गमनाय । ततस्तौ देवी भगवन्तं गौतमम् आयान्तं पश्यतः, दृष्ट्वा हृष्टौ, यावत्हृतहृदयी क्षिप्रमेव अभ्युत्तिष्ठतः, अभ्युत्थाय क्षिपमेव प्रत्युपागच्छतः, प्रत्युपागम्य यौव भगवान् गौतमस्तव उपागच्छतः, उपागम्य, यावत् - नम स्थित्वा भगवान् गौतम ने महावीर को पन्दनाकी नमस्कार किया, वन्दना नमस्कार करके फिर वे जहां पर वे दोनों देव थे उसी ओर चलने की तैयारी करते हैं इतने में (तएणं ते देवा भगवं गोयम एज्जमाणं पासंति ) उन दोनों देवों ने भगवान गौतम को जब आने के लिये तैया. र देखा, तो (पासित्ता ) देखकर (हट्ठा जाव हयहियया खियामेव अन्भुट्टेति ) वे बहुत अधिक आनंदित हुवे यावत् सृत हृदयवाले हो गये और शीघ्र ही अपने स्थान से उठे ( अन् हित्ता खिप्पामेव पच्चु बागच्छनि ) और उठकर शीघ्र ही वे गौतम के पास गये (पच्चुवागेच्छित्ता जेणेव भगवं गोयमे तेणेव जवागच्छति) सामने जाकर फिर वे दोनों देव जहां पर भगवान गौतम विराजे थे वहां पर आये। (उवागच्छित्ता जाव णमंसित्ता एवं वयासी) वहां आकर उन्हों ने गौतम को यावत् नमस्कार करके उनसे इस प्रकार कहा ( एवं खलु भते ! ભગવાન ગૌતમે તેમને વંદણું નમસ્કાર કર્યા. વંદણા નમસ્કાર કરીને તેઓ तमन्न हवान भजपा पानी तैयारी ४२वा साया. (तएण ते देवा भगव' गोयम एज्जमाण पासंति ) तमन्न हेवाये लगवान गौतमने पातानी पास भापता या (पासित्ता) भने पातानी १२५ मावत नधन (द्वा जाव हयहियया खिप्पामेव अभुट्ठति) भने घो। वर्ष थयो, तमना ह्य આનંદથી નાચી ઉઠયાં, અને તેઓ તેમનાં સ્થાનેથી તુરત જ ઊભા થયા ( अभुट्टित्ता खिप्पामेव पच्चुवागच्छति ) म ने तुरत ४ तेगा गौतमनी साभे गया. (पच्चुवागच्छित्तो नेणेव भगवं गोयमे तेणेव बागच्छति) से रीते સામે પગલે ચાલીને તે બને કે જ્યાં ભગવાન ગૌતમ વિરાજમાન હતા, स्या भावी पव्या . ( उवागछित्ता जाव णमंसित्ता एवं वयासी) या न गवान गौतमने पण नभ२४॥२ ४श तेभए मा प्रमाणे ४ -(एव खलु
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy