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________________ प्रमैयचन्द्रिका टीका श. ५ ७0 ४ सू० ५ शिष्यद्वयस्वरूपनिरूपणम् ४५ एवं वयासी) हे गौतम ! इस प्रकार से संबोधित करके भगवान् महा. वीर ने भगवान गौतम से ऐसा कहाँ- ' से गूणं तव गोयमा ! माण: तरियाए चट्टमाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए जाव जेणेव ममं अंतिए तेणेव हव्वं आगए ) हे गौतम ! ध्यान की समाप्ति में वर्तमान तुम्हें यह इस प्रकार का आध्यात्मिक यावत् विचार उत्पन्न हुआ है यावत् तुम इसी कारण से जहाँ पर मैं बैठा हुआ हूं वहां पर शीघ्र आये हो (से णूणं गोयमा ! अढे समहे) कहो गौतम ! यह अर्थ समर्थ है न ? अर्थात् कहो गौतम ! यही बात है न ? (हंता अस्थि तं गच्छाहि णं गोयमा ! ) हां भदन्त ! यही बात है । तो हे गौतम ! तुम उन देवों के पास जाओ ( एए चेव देवा इमाइं एयारूवाई वागरणाई वागरेहिति) वे देव ही तुम्हें इन प्रश्नों के विषय में खुलासा करके समझायेंगे। (तएणं भगवं गोयमे समणेणं भगवधा महावीरेणं अन्भणुन्नाए समाणे भगवं महावीरं वंदह, नमंसह, वंदित्ता जेणेव ते देवा तेणेव पहारेत्य गमणाए ) इसके बाद श्रमण भगवान महावीर द्वारा आज्ञा पाकर उन वयासी) " गौतम" मे समाधन ४शन श्रम वान महावीर गौतम लगवान L प्रमाणे ४धु-" से पूर्ण तव गोयमा ! क्षणतरियाए वहमाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए जाव-जेणेव मम अंतिए तेणेत्र हव्वं आगए) હે ગૌતમ! ધ્યાનની સમાપ્તિ થતા તારા મનમાં આ પ્રકારને આધ્યાત્મિક વિચાર આવ્યો હતો (ઉપર તે વિચાર દર્શાવ્યું છે, ) અને તે કારણે જ तु तुरत १ भारी पासे मा०ये। छे (से णूणं गोयमा ! अटूठे समठे ? ) 3 शौतम ! भारी and भरी छैन ? (हंता अस्थि-त' गच्छाहि ण गोयमा !) " महन्त ! मापनी पात साथी छ." त गौतम ! तु ते वा पासे . (एए चेव देवा इमाई एयारूवाई वागरणाई वागरेहिंति ) ते हे त से प्रश्नोनी तने ralम मापसे (तएण भगव गोयमे समणेणं भगवया महा. वीरेण अभणुनाए समाणे भगव पदइ, नमसइ, वदित्ता नमंसिता जेणेव ते देवा सेणेव पहारस्थ गमणाए) त्यारे श्रम मनवान मा १२नी माl ast, -- - --
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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