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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका शं. ५ उ0 ४ सू. २ केवलीहासादिनिरूपणम २६३ अथ छद्मस्थ-केवलिविषये किश्चिद् विशेषमाह-" छउमत्थे पं भंते ! मणुस्से निहाएज्ज वा, पयलाएज्ज या ? इति ' गौतमः पृच्छति-हे भदन्त ! छमस्थः खलु मनुष्यो निद्रायेत वा, निद्रां सुखप्रतिबोधफलां वा कुर्याद् वा प्रचलायेत वा ? प्रचलाम् ऊौंस्थित निद्राकरणलक्षणां कुर्याद् वा ? भगवान् तत्स्वीकुर्वन्नाह-'हंता, निदाएज्ज वा, पयलाएज्ज वा' हे गौतम ! हन्त, त्वदुक्तं सत्यम्-छद्मस्थो मनुष्यः अवश्यं निद्रायेत वा, प्रचलायेत वा, किन्तु छद्मस्था प्रकार के कर्मों का बन्धक भी होता है। तृतीय भङ्ग की अपेक्षा बहुत नारक आदि जीव सात प्रकार के कर्मों को बांधने वाले और बहुत नारक आदि जीव आठ प्रकार के कर्मों के बांधने वाले होते हैं। छद्मस्थ और केवली के विषय में अब सूत्रकार कुछ विशेष-वात को प्रकट करने के लिये (छउमत्थेणं भंते मणुस्से) इत्यादि सूत्र पाठ कहते हैं इसमें गौतम प्रभुसे पूछते हैं कि हे भदन्त ! छमस्थ मनुष्य सुख से जिससे जग सके ऐसी फल वाली (निदाएज्ज वा) निद्रा लेता है क्या? (पयलाएज्ज वा) अथवा-प्रचला-खड़े २ जो निद्रा ली जाती है वह-यह निद्रा का एक प्रकार है। शास्त्र में निद्रा, निद्रानिद्रा, प्रचला; प्रचलाप्रचला, और स्त्यानद्धि के भेदसे निद्रा ५ प्रकार की प्रकट की गई है। सो यहां पर निद्रा और प्रचला नामकी निद्राओं को लेकर गौतम ने प्रभु से इस प्रकार से पूछा है। इस के उत्तर में प्रभु गौतम से कहते हैं कि-(गोयमा) हे गौतम! (हंता निदाएज्ज वा पयलाएज्ज वा.) हां, छद्मस्थ निद्रा लेता है और प्रचला लेता है । परन्तु केवली બાંધે છે અને કેટલાક આઠ પ્રકારનાં કર્મોને બધ બાંધે છે ત્રીજા ભંગની અપેક્ષાએ ઘણા નારક આદિ છ સાત પ્રકારનાં કર્મોને બંધ બાંધતા હોય છે અને ઘણું નારકાદિ જી આઠ પ્રકારનાં કર્મોને બંધ બાંધતા હોય છે. છઘસ્થ અને કેવલીના વિષયમાં વિશેષ વાત પ્રકટ કરવાના હેતુથી સૂત્રકાર (उमस्थेणं भंते मणुस्से) त्यादि सूत्रो ४७ छ.. प्रश्न- महन्त ! छमस्थ मनुष्य (निदाएज्ज वा) निद्रा से छे, मरी? (पयलाएज्ज वा) शुते प्रत्यक्षा (GAL SAL निद्रा) से छे भरे। शामा निद्राना पाय १२ ॥ छ-(१) निद्रा (२) निद्रानिद्रा (3) प्रया (४) प्रयदायमा भने (५) सत्याद्धि. मा सूत्रमा निद्रा भने प्रदानी અપેક્ષાએ ગૌતમ સ્વામીએ પ્રશ્ન પૂછે છે. उत्तर-(गोयमा!) गौतम ! “ता निदाएज्ज वा पयलाएजज वा',
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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