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________________ भंगवतीमचे माधन्तयोरेव विधानात् , तदेव विशदीकर्तुमाह-'अणन्तरगठिया' अनन्तरग्रथिता अनन्तरेण प्रथमग्रन्थीनामव्यवहितेन रचितैः ग्रन्थिभिः सह ग्रथिता अनन्तर. ग्रथिता, एवं 'परपरागठिया' परम्परग्रथिता परम्परैः अव्यवहितैथिभिः सह ग्रथिता परम्परग्रथिता, उक्तफलितार्थमाह-' अन्नमन्नगढिया' इति, अन्योन्याथिता, अन्योन्येन परस्परेण एकेन.ग्रन्थिना सह अन्यो द्वितीयो ग्रन्थिः, अन्येन च सह अन्यः,इत्येवंरूपेण ग्रथिताअन्योन्यग्रथिता भवति, तथा च 'अन्नमनगरूयत्ताए' अन्योन्यगुरुकतया, अन्योन्येन ग्रन्थनात् गुरुकता-विस्तीर्णता अन्योन्यगुरुकता. तया, तथा ' अन्नमनभारियत्ताए' अन्योन्यभारिकतया, अन्योन्यस्य भारो विद्यते 'अणंतरगडिया' जो जालग्रन्थिका सबसे पहिले गूंथी हुई गांठों के पास रही हुई गांठों के साथ गूंथी गई है तथा जो जालग्रन्थिका बीच यीच की गांठों के साथ २ गंथी हुई होती है वह परम्पर ग्रथित जालअन्थिका कहलाती है । इसमें यह नियत नहीं होता है कि वह क्रमवार एक के बाद एक गांठ से गूंथी जावे इसमें अक्रम से गांठें लगाई जाती हैं। इस तरह 'अन्नमन गढिया ' एक गांठ के साथ दूसरी गांठ और दूसरी गांठ के साथ तीसरी गांठ और तीसरी गांठ के साथ चौथी आदि गांठे जिसमें लगाई गई हों ऐसी वह जालग्रन्थिका हो ' अन्नमन्न गरुयत्ताए ' इस तरह की गांठों से गूंथी होकर वह जब मछलियों को पकड़ने के लिये जलाशय आदि स्थान में डाली जाती है तब वह विस्तृत हो जाती है फैल जाती है ' अन्नमन्नमारियत्ताए' और वह पीच में टूटती नहीं है क्यों कि एक दूसरी गांठ का भार आपस में मेवी जयन्यिानु सही दृष्टान्त साप्यु छ.) (अणतरगढिया) मा પરમ્પર ગ્રથિત ગાંઠે હેય, (જે જાળગ્રન્શિકા સૌથી પહેલાં ગુંથેલી ગાઠેની સાથે પાસેની ગાંઠેથી ગંઠાયેલી છે, અને પછી પાસેની ગાંઠે સાથે તેની પછીની ગાઠ વડે ગાંઠાયેલી હોય, એવી જાળને પરસ્પરગથિત જાળ કહે છે) ( अन्नमन्नगढिया) मे jsनी साथे मील is, मन मी isनी साथै ત્રીજી ગાંઠ, અને ત્રીજી ગાંઠની સાથે ચેથી ગાંઠ એવી રીતે પરસ્પર જેમાં गठिानी भूथिए। डाय, ( अन्नमन्नगरूयत्ताए) 0 शतनी ही 43 सुथायी તે જાળશ્રન્શિકાને જ્યારે જળાશયમાં નાખવામાં આવે છે ત્યારે તે વિસ્તૃત 45 तय -सा। 1य छ, (अन्नमन्नमारियताए) ते 1 मा७८iना ભારથી તૂટી જતી નથી કારણકે બધું વજન એક બીજી સાથે ગંઠાયેલી ગાંઠ,
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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