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________________ भगवती * से वनाई जोयणसहस्लाई विवखंजीवसहमाई परिक्लेवेणं पण्णत्ते, तत्थ अविवत्यई से णं असंखेनाई जोगणसहस्साई गिलाई जीयणसहरलाई परिक्लेवेणं पण्णत्ते । I ने के महालय पण्णत्ते ? गोयमा ! अयं णं श्रीव-समुद्राणं सव्वतगए, जाब-परिपण महिद्दीर, जाब- महाणुभावे इणामेव केलक जंबुडीवं दीवं तिहिं अच्छरानिवाएहिं अणुविहिताणं हवं आगच्छिना, से णं देव ताए उए, दुनियाग, जाब- देवराईए बीईवयमाणे बीईययमाणं दुर्गा वा विवाद वा उद्योगं उन्मासे बीईवा अयेगवंतमुक्कायं बीईवइजा, अत्येगइयं तमुक्कार्य श्री पा. एमालणं गोरमा ! तमुका पण्णत्ते । अन्तिणं ननु हाइ वा गहावणा इवा ? ण इट्टे नम अधि भने ! तमुका गामा इवा, जाब-सन्निवेसा समं । अस्थि णं भंते! नमुकाए उगला या सर्वानि संमुनि, संवासंति वा ? हंता, अस्थि ! नकट असुरी पकोड़, नागी परेड ? चील अनुवि परे णागो विपक अभिनेता थपियो, वायरे? मेकअप नागी 1 से न 4 2
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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