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________________ प्रेमैयचन्द्रिका टी० ० ६ ०४ १० २ प्रत्याख्यानादिनिरूपणम् ०२१ सर्वविरतिमन्तः, अथवा अप्रत्याख्यानिनः विरतिरहिताः 'प्रत्याख्यानाप्रत्याख्यानिनो देशविरतिमन्तो वा भवन्ति ? भगवानाह- गोयमा ! जीरा पच्चक्खाणी थि, अपच्चक्खाणी वि, पच्चक्खाणापच्चक्वाणी वि' हे गौतम! जीवाः केचित् प्रत्याख्यानिनोऽपि सर्वविरता अपि भवन्ति, केचिद् जीवा अप्रत्याख्यानिनोऽपि अविरता अपि भवन्ति, केचिच्च जीवाः प्रत्याख्यानाप्रत्याख्यानिनोऽपि देशविरता प्रभु से ऐसा पूछा है कि-"जीवाणं भंते ! किं पच्चक्खाणी, अपच्चक्खाणी, पच्चक्खाणापच्चक्खाणी?"हे अदन्त ! जीव क्या प्रत्याख्या नी-सर्वविरतिवाले होते हैं ? अथवा अप्रत्याख्यानी-मर्वविरति से रहित होते हैं ? या प्रत्याख्यानाप्रत्याख्यानी-देशविरतिवाले होते हैं ? इस गौतमके प्रश्न के उत्तर में प्रभु उनसे कहते हैं कि-(गोयमा) हे गौतम ! (जीवा) जीव (पच्चक्खाणी वि, अपच्चक्खाणी वि, पच्चक्खाणापच्च. क्खाणी वि) प्रत्याख्यानी भी होते हैं, अप्रत्याख्यानी भी होते हैं और प्रत्याख्यानाप्रत्याख्यानी भी होते हैं। तात्पर्य कहने का यह है कि इस संसार में कितनेक ऐसे भी जीव हैं, जो सर्वविरतिरूप चारित्रवाले होते हैं-कितनेक ऐसे भी जीव हैं कि जीनके किसी भी प्रकार की विरति नहीं होती है-अविरत होते हैं। और कितनेक जीव ऐसे भी होते हैं कि जो देशविरतिरूप श्रावकाचार को धारण किये हुए होते हैं। गौतम स्वामी महावीर प्रभुन सेवा प्रश्न पूछे छे है-(जीवाणं भवे! कि पच्चक्खाणी, अपञ्चम्खाणी. पच्चक्खाणापच्चक्खाणि १) महन्त ! वो શું પ્રત્યાખ્યાની–સર્વ વિરતિવાળા–હેય છે? કે અપ્રત્યાખ્યાની–સર્વ વિરતિ રહિત-હાય છે કે પ્રત્યાખ્યાના-પ્રત્યાખ્યાની-દેશવિરતિવાળા (અંશત वितियुत) डाय छ ? ગૌતમ સ્વામીના પ્રશ્નનો જવાબ આપતા મહાવીર પ્રભુ કહે છે—(गोयमा!) 3 गौतम ! ( जीवा) । (पच्चक्खाणी वि, अपच्चक्खाणी वि, चच्चक्खाणापच्चखाणी वि) प्रत्याभ्यानी पY डाय छ, अप्रत्याभ्यानी પણ હોય છે, અને પ્રત્યાખ્યાના-પ્રત્યાખ્યાની પણ હોય છે. આ કથનને ભાવાર્થ એ છે કે આ સંસારમાં કેટલાક એવાં જ હોય છે કે જેઓ સર્વવિરતિરૂપ ચારિત્રવાળા હોય છે, કેટલાક એવાં પણ જીવે હોય છે કે જેઓ કઈ પણ પ્રકારની વિરતિથી રહિત-અવિરત હોય છે, અને કેટલાક એવાં પણ છે હેય છે કે જેમણે દેશવિરતિરૂપ શ્રાવકાચારને અંગીકાર ३रेस हाय छे.
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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