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________________ ૨૦૨૦ भंगवती सूत्र ख्याननिर्वतितायुष्काः, त्रयोऽपि । अक्शेपाः अप्रत्याख्याननितितायुष्काः॥ (गाथा)-प्रत्याख्यानं जानाति, करोति, त्रीण्येव, आयुर्निवृत्तिः । सपदेशोद्देशे च एवमेते दण्डकाश्चत्वारः, ॥ १॥ तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त ! इति ॥ मू० २ ॥ षष्ठशत के चतुर्थउद्देशः ॥६-४ टोका- 'जीवाणं भंते । किं पच्चक्खाणी, अपचक्खाणी, पच्चक्खाणापच्चक्खाणी ? ' गौतमः पृच्छति-हे भदन्त ! जीवाः खलु किं प्रत्याख्यानिनःजीव और वैमानिक देव प्रत्याख्यान से निर्तित आयुवाले होते हैं। अप्रत्याख्यान से निर्वर्तित आयुवाले होते हैं। प्रत्याख्यानाप्रत्याख्यान से निर्वतित आयुवाले होते हैं। तथा बाकी के जीव अप्रत्याख्यान से निर्वर्तित आयुवाले होते हैं। (गाहा-पच्चक्खाणं जाणइ, कुन्वह तिन्नेव आउनिव्वत्ती। सपएलुद्देसम्मि य एमेए दंडगा चउरो) " प्रत्याख्यान" यह एक दण्डक है । " जानाति" यह द्वितीयदण्डक है। "कुव्वह" यह तीसरा दण्डक है। प्रत्याख्यान, अप्रत्याख्यान और प्रत्याख्यानाप्रत्याख्यान इन तीनों को जानता है, करता है तथा आयुष्क की निवृत्ति करता है-ऐसा यह चतुर्थ दण्डक है सप्रदेश उद्देशक में इस प्रकार से ये चार दण्डक हैं। (सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति) हे भदन्त ! जैसा आपने कहा है वह ऐसा ही है, हे भदन्त ! यह ऐसा ही है। टीकार्थ-जीव का अधिकार होने के कारण सूत्रकार इनके प्रत्याख्यान आदि का निरूपण इस सूत्र द्वारा कर रहे हैं-इसमें गौतम ने પ્રત્યાખ્યાનથી નિવર્તિત આયુવાળા થાય છે, અપ્રત્યાખ્યાનથી નિર્વતિત આયુવાળા થાય છે, અને પ્રત્યાખ્યાના-પ્રત્યાખ્યાનથી નિર્વતિત આયુવાળા થાય છે, તથા બાકીના જી અપ્રત્યાખ્યાનથી નિર્વર્તિત આયુવાળા થાય છે. (गाहा-पच्चक्खोण जाणइ, कुव्वइ तिन्नेव आउनिवत्ती सपएसुसम्मि य एमेए दंडगा चउरो) " प्रत्याभ्यान " 21 28 छ, “ जानाति (गये छ)" मा भानु छ, “ कुबइ (४२ छे) " 2ी छे. " प्रत्याખ્યાન, અપ્રત્યાખ્યાન અને પ્રત્યાખ્યાનાપ્રત્યાખ્યાનને જાણે છે, કરે છે તથા આયુષ્કની નિવૃતિ કરે છે,” એવું ચોથું દડક છે. પ્રદેશ ઉદ્દેશકમાં આ પ્રકારના આ ચાર દંડક છે. (सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति) 3 ! मापे ४ा प्रमाणे १ छ. હે ભેદન્ત! આપની વાત સર્વથા સત્ય જ છે. ટીકાજીવને અધિકાર ચાલી રહ્યો છે. તેથી સૂત્રકાર આ સૂત્રમાં પ્રશ્નોત્તરે દ્વારા જીવનમાં પ્રત્યાખ્યાન આદિ નિરૂપણ કરે છે–
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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