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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श ३.उ १ सामानिकदेवर्द्धिविपये गौतम प्रश्न २९ सम्पन्नः 'नाव' यावत् यावत्पदेन- "महज्जुईए महावले महाजसे महासोक्खे महाणुभावे," इत्येतेषां ग्रहणम्, महादिपदानामों व्याख्यात एव । “एव इय च ण पभू विउवित्तए" एतावच खलु प्रभु. विकृर्वितम्-यदि अमरेन्द्रः चमरः पूर्वोक्तवर्णितातिशयसमृद्धिातिसौख्यसपत्तियशाळ्यातिविशिष्टो जम्बूद्वीप द्वीपान्तरश्च वैक्रियकरणशच्या निर्मितविविधाऽमुरकुमारदेव देवीमि पूरयितु समर्थ. तर्हि "चमरस्स ण मते ! अमरिंदस्स अमररणो सामणिया देवा के महिहिया नाव" चमरम्य भगवन् ! अमरेन्द्रस्य अमुररानस्य सामानिका' देवा. किं महर्टिका यावत् चमरस्य सामानिकादेवा कियन्महर्दिका कियच्च यावत्-इह यावत्पटेन क्यिन्महायुतिका क्यिन्महावला क्यिन्महायशस किय न्महासौख्या. क्यिन्महानुभावा., इत्येतेपा ग्रहणम्, एपामर्थ. व्याख्यातएव "केवइय च ण पभू विउवित्तए" कियच्च खलु प्रभु विकृर्वितम् वैक्रियकरणशच्या विविधरूपनिर्माणद्वारा द्वीपद्वीपान्तर पूरयितु समर्था ॥२॥ माद्विसम्पन्न है 'जाव' पदसेगृहीत 'महज्जुइए, महायले, महाजसे, महासोफ्खे, नहाणुमावे' वह महाद्युतिघाला है, महापलशाली है, महायशस्वी है, महासुखसपन है और घह, एवतिय च ण प विउन्धि प्सए' विक्रयाशक्ति से ऐसा युक्त है कि यदि वद विक्रिया करे तो अपनी विक्रियासे किये हुवे देव देवियों मारा समस्त जंबूछीप को तथा अन्य दीपान्तरों को भी भर सकता है। तो फिर हे भदन्त ! 'चमरस्स णं असुरिंदस्स असुररण्णो सामाणिया देवा के महिसिया जाच केवइय च ण पमू विउन्धितए' उस असुरेन्द्र भसुरराज घमर के सामानिक देव कितनी पटो ऋद्धिवाले है तथा यावत्पद गृहीत कितनी महारतिषाले हैं, कितने पलिष्ठ है कितने महायश शाली है और कितने सुखसंपल है । और वे अपनी वैक्रियशक्तिमारा બધી વિમુર્વણ શકિત ધરાવે છે તે તેના સામાનિક દેવે કેટલી ઋદ્ધિ સંપન્ન છે? तमाम qिglaयी भुत छ ? nी "जाप (पर्यन्त) uी "महज्जुइए, मापले, महामसे, महासोक्खे, माणुमावे" पर। 8 ४i छ ४ वार्नु તાત્પર્ય એ છે કે તે અસુરજ ચમર આટલી બધી ઋદ્ધિ, પુતિ, બળ, યશ, સુખ --અને પ્રભાવવાળે છે, તે તેને સામાનિક રે કેટલી , જુતિ, બળ, યશ, સુખ અને પ્રભાવવાળા છે? જે ચમરે પિતાની ક્રિય શક્તિથી બનાવેલા દેવ દેવીઓથી આખા જીપને તથા અન્ય દ્વિીપને પણ ભરી દઈ શકે છે, તે તેના સામાનિક
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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