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________________ - - २४ भगती फर्मपुदूगलसमूहाद् विविधमक्ष्मन्तनसारपुद्गलान दण्डनिसर्गहीवान् परितः सामस्स्येन भादत्ते फस्य पुद्गलान् भादचें इस्या-'तनहा ' सद्यथा ". रयणाण जार-रिद्वाण अहवायरे पोग्गछे" तद्रस्नाना यावत् रिटाना यषा पादरान पुद्गलान फर्केतनादि यावत् रिटपर्यन्तपोडभविधरत्नानां यया बादरान मसारान् पुद्गलान् दण्डनिसर्गगृहीतान् परिशातयति 'जहा सहुमे पोग्गले परियाएर' यया सूक्ष्मान् पुद्गलान् पादने-सारान् पुद्गलान् पर्यादचे । अत्र यावच्छदात्-"बइराण, वेरुलियाण, लोहियक्रवाण, मसारगलानं, इसगरमाण, पुरूयाण, सोगधियाण, जोतीरसाग, अकाण, रगणाण, ग्जतानाम जायरुवाणं,अजणपुलयाण,फलिहा,छाया-वजाणाम्, वैर्याणाम्,लोहिताक्षाणाम, मसारगल्लानाम्, इसगर्माणाम् , पुलकानाम्, सौगन्धिकानाम्, ज्योतीरमानाम्, दण्डाकाररूपमें परिणत हुए ये आत्मपदेश ऊँचे नीचे और लम्बे रहते हैं, और इनकी मोटाई शरीर के परापर होती है इनके साथ कर्मप्रदेश रहते हैं। इस समय भिन्न २ जाति के सूक्ष्म सारभूत पुग्दलों को यह दड चारों तरफ से पूर्णरूप से प्रहण करता है। कितने पुम्बलों को यह ग्रहण करता है तो इसके लिये सूत्रकार करते हैं 'त रयणानं भाव १६ रिहाण महापायरे पोग्गले परिसादे' वह कर्केसन आदि रिष्ट सफ के १६ प्रकार के रस्नों के यथायादर-अमार पुग्दलों को परिशाटन करदेता है-छोड़ देता है-अर्थात् उन्हें दूर कर देता है और अहासुहुमे पोग्गले परियाएई' उनके यथासूक्ष्म-सारभूत-पुग्दलोंको ग्रहण कर लेता है। यहा पर पावत् शन्यसे 'घइराण २, रुलियाण लोहियक्वाण ३, ममारगल्लाण ४, ईसगन्माण ५, पुलयाण ६, सोगधियाण ७, जोइरसाणे ८, પરિશમેલા તે આ શો ઉપરથી નીચે સુધી લાબા રહે છે અને તેમની જાડાઈ શરીરની બરાબર હોય છે તેમની સાથે કર્મપ્રદેશ છે તે સમયે તે ૧૮ જુદી જુદી જાતના સારભૂત પાગલેને ચાર તરફથી પૂર્ણરૂપે શ્રધ્ધ કરે છે મન પત્રલેને તે કઠણ કરે से सूत्रा नायना सूतभा मताव"त रयणाणे माव द्विाण महापायरे पेसाले परिसाततनयी मायने (२५ ५५न्तन १६ सपना लाना मसाम yead पाटन छ (BLA२७) भने “मामुरमे पोमा परियाण તેમને સારભૂત પુણેને પ્રહણ કરે છે અહી નાવ (પર્યન્ત) પર તારા નીચના ને सत्रमा समावेश ४शयो छ वाराणं वेरुलियाण छोष्ठियक्लाण मसारगलामे इसगन्माण पुलयाण सोगभियाण जोहरसाण अकाण भजयाण रयणाण
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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