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________________ - - - - - - - ७५६ . : . . .:: :. : ... . भगरतीर हे गौतम ! 'चत्तारि' चतस्रः : चउसहीओ' चतुप्पष्टयः 'पायरक्तदेव साहस्सीओ' आत्मरक्षकदेवसाहरूयः चतुप्पष्टिसम्माणि चत्वारि - चतु गुणितानीत्यर्थः पट्पञ्चाशत्सहस्राधिकद्विलक्षसंख्यका (२,५६०००) चमरस्यात्मरक्षकदेवा वर्तन्ते, ' तेणं आयरक्खा' ते खलु आत्मरक्षकाः 'वण्णओ' वर्णकः अधस्तनवर्णनानुसारं विज्ञेयाः 'सनद्र-बद्ध-वर्मितकवचाः, उत्पीडितशरासनपट्टिकाः, पिनद्धग्रेवेयकाः, बद्धावद्ध - विमलवरचिहपट्टाः, गृहीतायुधमहरणाः, त्रिनतानि, त्रिसन्धितानि यजमयकोटीनि धनपि अभिगम, हजार आत्मरक्षकदेव कहे गये हैं ? इसका उत्तर देते हुए प्रभु कहते है कि 'गोयमा' हे गौतम! 'चत्तारिचउसडीओ आयरक्खदेवसाह. स्सीओ पण्णत्ताओ' चमरके आत्मरक्षक देव चार चौसठ हजार को चारगुणा करने पर दो लाख ५६ हजार होते हैं । 'तेणं आय. रक्खावण्णओ' उन आत्मरक्षकों का वर्णन कर लेना चाहिये-जो इस प्रकार से है-'सम्बद्ध-पद्धवर्मितकयचाः जिन्होंने अपने शरीर ऊपर कवच को अच्छी तरहसे बांधा है, उत्पीडितगरामनपट्टिकाः' अपने २ धनुष के ऊपर प्रत्यंचा को आरोपित करके जिन्होंने उसे अच्छी तरह से तैयार कर रखा है 'पिनद्धग्रेवेयकाः' गले में जिन्होंने हारको पहिना है, 'यद्ध-आबद्ध- विमलवरचिन्हपट्टा सुवर्णका बना हुआ वीरता का सूचक विमल, उत्तम चिह जिन्होंने अपने मस्तक पर धारण किया है, 'गहियाउहपहरणा' आयुध और प्रहरणोको जिन्होंने अपने हाथों में ले रखा है, 'त्रिनतानि, त्रिसन्धितानि, वज्रमयकोटीनि प्रमाणे पाम आये -'गोयमा ! उ गौतम ! 'चत्तारि चउसद्वीओ आयरकावदेवसाहस्सीओं पण्णताओ'. सुरेन्द्र, असु२२१०४ यभरना यात्मरक्षा हो यार यास १२ प्रभा छे. मेटले ६४०००४ ४-२५६००० आत्मरक्ष । छे. 'तेणं आयरक्खावण्णओ' ते मात्भ२६ हेवार्नु न २j नये.. ते पणन नाये प्रभारी छ-' सन्नद्ध-बद्धवर्मितकाचा'..रेभारे, पोताना, शरी२ ५२ तर धारण ज्यु छ, 'उत्पीडितशरासनपहिका' भए पातपाताना धनुषा ..५२ प्रत्यया यावान वीशन मरा२ तैयार सभ्य छ, 'पिनद्ध ग्रैवेयका' मा तेमना मा २ पर्या छ, 'बद्ध-आबद्ध-विमलवरचिन्ह. पट्टाः सुपर्ण ना मनेसा, वारताय विभत, त्तम थिमा मत ५२ धारण या छे, गहियाउह पहरणा' भी आयुध भने शवासाने पात, पाता थमा धारण १२व छ, 'त्रिनतानि, त्रिसन्धितानि, वज्रमयकोटीनि, धषि अभिगृह्य'. १२ये भने मा
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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