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________________ ६६६ भगवतीले अङ्गीकुर्वनाह-' से भंते ! सेवं भंते ! नि' तदेवं हे भदन्त । स्वदुक्तं सत्यमेव, त्यदुक्तं सत्यमेव इति वारं वारं भगवन्तं सम्बोध्यानुमोदनेन आइरा. तिशयो धोत्पते । इति तृतीयशतकस्य चतुर्थीदिशः समाप्तः ॥ सू० ५ ॥ इतिश्री-जैनाचार्य-जैनधर्मदिवाकर-पूज्य श्री घासीलाल प्रतिविरचितायां श्री भगवतीसुत्रस्य प्रमेयचन्द्रिकाख्यायां व्याख्यायां उतीय शतकस्य चतुर्देिशकः समाप्तः - - - - - - कहा गया है। प्रभु के द्वारा कृत समाधानरूप उपदेश में गौतमने जय इस प्रकारसे उनके वचनों को सुना तब वे उनके वचनों को प्रामाणिकरूप से अङ्गीकार करते हुए बोले-सेव भंते ! सेवं भंते । त्ति' हे भदन्त ! जो आप देवानुमियने यह प्रतिपादन किया है-वह सर्वथा सत्य ही है-सर्वथा सत्य ही है-सर्वथा सत्व ही है इस प्रकार चार बार कह करके उन्होंने प्रभु के वचनों की अनुमोदना की इस 'सेवं भते सेघ भते " कथन से गौतमने प्रभु के प्रति अपना आदरातिशय व्यक्त किया है । सू० ५॥ जैनाचार्य श्री घासीलालजी महाराजकृत 'भगवतीसूत्र' प्रमेयचन्द्रिका व्याख्याके तीसरे शतकके चौथा उदशा समाप्त ॥ स्वामी तयनामा पातानी संपूर्ण श्रद्धा 42 ४२ता है 'सेवं भंते ! सेवं ते! ति है महन्त ! साचे २ पातनुं प्रतिपादन यु त सवथा सत्य मने યથાર્થ છે. તેમાં શંકાને સ્થાન જ નથી. આ રીતે વારંવાર કહીને તેમણે મહાવીર प्रना क्यानी अनुभाहना ४२. 'सेवं भंते ना ४यनथी गौतम स्वामी મહાવીર પ્રભુ પ્રત્યેને પિતાને અતિશય આદરભાવ વ્યકત કર્યો છે. ત્યાર બાદ મહાવીર પ્રભુને વંદણ નમસ્કાર કરીને તેઓ સંયંમને તપથી આત્માને ભાવત કરતા પિતાને સ્થાને બેસી ગયા. સૂ૦ ૫ જૈનાચાર્ય શ્રી ઘાસીલાલજી મહારાજકૃત ભગવતી’ સત્રની પ્રિયદર્શિની વ્યાખ્યાના ત્રીજા શતકના ચોથા ઉદ્દેશક સમાપ્ત
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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