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________________ प्रमेयंचन्द्रिकाटीका श.३ उ.४ मृ.४ जीवपरलोकगमनस्वरूपनिरूपणम् ६३९ वैमानिकानां प्रशस्तलेश्यामदर्शनाय गौतमःपुनःपृच्छति-'जाव जीवेणं । भंते ! इत्यादि । हे भदन्त ! 'जे भविए जोइसिएसु उववन्जिए पुच्छा' यः खल जीवः यावत्-ज्योतिप्का उपपत्तुं जन्म ग्रहीतुं भव्यः योग्यः तस्यापि विषय मम पृच्छा वर्तते ! यावत्करणात-भवनपति-वानन्यन्तरौ संग्राह्यो । भगवानाह 'गायमा ! हे गौतम ! 'जल्लेसाई दव्याई' यल्लेश्यानि द्रव्याणि 'परियाइत्ता' पर्यादाय परिगृह्य जीवः कालं करेइ' करोति 'तल्ले सेम उववज्जई तल्लेश्येषु उपपद्यते, प्रकृते दृष्टान्तं प्रदर्शयति-तंजहा-तेउलेसेस' तथा तेजोलेश्येषु यव्या' इस तरह-नारकसूत्र के कथनके अनुसार-असुरकुमार आदि के जो कृष्ण आदि लेश्या होती है, वह लेश्या उन असुरकुमार आदिकोंके कहना चाहिये । अव गौतम ज्योतिष्क एवं वैमानिकों में प्रशस्त लेश्या प्रकट कराने के लिये प्रभु से कहते हैं कि-'जाव जीवेणं भंते ! जे भविए जोइसिएसु उववजित्तए 'पुच्छा' हे भदन्त ! जो जीव यावत् ज्योतिप्कों में जन्म धारण करनेके योग्य है उसके विपयमें मैं पूछना चाहता हूं तो आप मुझे समझाइये-यहां यावत् शब्द से भवनपति और वानव्यन्तर इन दोनोंका ग्रहण हुआ है। तब प्रभुने कहा-'गोयमा' हे गौतम ! मैं इस विपयमें कहता हूंसुनो-'जल्लेसाई दवाई परियाइत्ता कालं करेइ तल्लेसेसु उववज्जइ' जैसी लेश्यावाले द्रव्यों को ग्रहण करके जीव मरता है, वह उसी लेश्यावाले में उत्पन्न होता है । इसी बातको 'तं जहा' दृष्टान्त द्वारा प्रदर्शित किया जाता है कि-'तेउलेसेसु' ज्योतिष्क योग्य जीव तेजो આ રીતે-નારક સૂત્રના કથન પ્રમાણે- અસરકુમાર આદિની જે કૃષ્ણ આદિ લેસ્યા હોય છે, તે લેશ્યા તે અસુરકુમાર આદિકમાં કહેવી જોઈએ. હવે તિક અને વૈમાનિક દેવામાં જે પ્રશસ્ત લેશ્યાઓ હોય છે તેને પ્રકટ કરતા ગૌતમ સ્વામી કહે છે કે – 'जाव जीवे ण भंते! जे भविए जोडसिएस उववन्जित्तए पुच्छा' 3 महन्त ! જે જીવ ભવનપતિ, વાનવ્યન્તર અને પ્રતિષ્કમાં જન્મ ધારણ કરવાને ચગ્ય હાય છે, તે જીવ કોલ કરીને કઈ લેશ્યાવાળાઓમાં ઉત્પન્ન થાય છે? તેને ઉત્તર મહાવીર પ્રભુ नीय प्रभारी मापे - गोयमा ! गौतम! 'जल्लेसाई दवाई परियाइत्ता कालं करेइ तल्ले सेमु उववज्जड वा वेश्यावा द्र०यने यह ४शन ७१ કાલ કરે છે, એવી લેશ્યાવાળામાં તેજીવ ઉત્પન્ન થાય છે. એ જ વાતને દષ્ટાન્ત दास नीय प्रमाणे समनपामा माछ- ' तंजहा तउलेसेसु ७३ भरती
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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