SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 828
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - ६३८ .. ... .. .. भगवतीय) येपा द्रव्याणां तानि यल्लेश्यायाः सम्बद्धानि 'दल्याई द्रव्याणि 'परिभाषा' पर्यादाय भावपरिणामेन परिशमा फालं मरणधर्म 'करेइ करोति पामोति 'तल्ले सेमु' तल्लेश्येपु नारफेषु स 'उपवजई' उपपद्यते जायते प्रकते नैरयिकार्यमाह 'तं जहा' तपथा-'फण्डलेसेमु या' कृष्णलेश्येपु या, कृष्णा लेश्या येषां तेषु 'नीललेसेमुन्या' नीललेश्येपु या, पूर्ववत्समासः 'कांउलेमु वा' फापोतलेश्येपुवा, अर्थात् एवं :प्रकारेण 'जस्स जा लेस्सा' यस्य . या लेश्या भवति अमुरकुमारादेर्या कृष्णादिका लेश्या सा लेश्या तस्यामुरकुमारादे भणितव्येतिः। सा 'तस्स भाणियन्वा तस्य भणितव्या वक्तव्या अथ ज्योतिप्क की है वे यल्लेश्य है-सो जिन लेश्याओं से सम्बद्ध दलाई द्रव्योंको 'परियाइत्ता' भाव परिणाम से ग्रहण करके वह जीव कालं करेह' मरता है 'तल्लेसेस्सु उववजइ' उन लेश्यावाले नारकों में वह उत्पन्न होता है । तात्पर्य कहने का यह है कि जिस जीव के मरते समय जिस लेश्याके परिणाम रहते हैं. वह जीव उसी लेश्यावाले जीवोंमें उत्पन्न होता है । इस नियमके अनुसार जो जीव. नरकगति में उत्पन्न -होनेवाला है यदि -उस जीवके परिणाम कृष्ण नील और कापोत इन तीन अशुभ लेश्याओं में से मरते समय जिस लेश्याके होगे. वह जीव उसी लेश्यावाले नारकमें उत्पन्न होगा। यदि मरते समय कृष्ण लेश्याके परिणाम है; तो वह मरकर कृष्णलेश्यावाले नारको जन्म धारण करेगा. और यदि नीललेश्याके परिणाम है मरते समय, तो मरकर नील लेश्यावालों में उत्पन्न हो ... जायगा और यदि कापोत लेश्याके मरते समय परिणाम है, तो वह-मरकर कापोतलेश्यावलि नारक उत्पन्न हो जायेगा । एवं जा जस्स लेस्सा सा तस्स भोणि: द्रव्य अडए प्रशने भर पाने छ, 'तल्लेसेसु उववजह तेश्यावजिनामा ઉત્પન્ન થાય છે. કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે જે જીવના મરતી વખતે જે લેયાંના પરિ. ણામ રહે છે. તે વેશ્યાવાળા જેમાં તે ઉત્પન્ન થાય છે. મરતી વખતે તે જીવનમાં પરિણામ કુકણ નીલ- અને -કાપિત એત્રણલેશ્યાઓમાંથી જે લેશ્યાના હોય છે તે લેશ્યાવાળા નાકમાં તે ઉત્પન્ન થાય છે. મરતી વખતે કુષ્ણુલેશ્યાનાં પરિણામ હોય તે છવષ્ણુ લેશ્યાવાળા નારમાં ઉત્પન્ન થાય છે, જે મરતી વખતે નીલ ગ્લેશ્યાનાં પરિણામ હોય તે તેજીનલ કલેક્ષાવાળા નારકમાં ઉત્પન્ન થશે मन भरती मते, अपात श्यानां परिणाम होते. भान पात अश्याचा नाic BY एवं -जा जस्स. लेस्साहसा तस्स भणियब्वाई PHtt.."
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy